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नरसंहार के दिन से बंद है सेनारी की ठाकुरबाड़ी

यादें . 18 मार्च, 1999 की देर शाम एमसीसी ने दिया था घटना को अंजाम, अब भी दहशत में हैं लोग जहानाबाद : 18 मार्च, 1999 की भयावह काली रात को सेनारी के भीषण नरसंहार का गवाह बनी गांव की ठाकुरबाड़ी बीते 17 साल से बंद है. घटना के बाद से यहां आराध्य देव की […]

यादें . 18 मार्च, 1999 की देर शाम एमसीसी ने दिया था घटना को अंजाम, अब भी दहशत में हैं लोग

जहानाबाद : 18 मार्च, 1999 की भयावह काली रात को सेनारी के भीषण नरसंहार का गवाह बनी गांव की ठाकुरबाड़ी बीते 17 साल से बंद है. घटना के बाद से यहां आराध्य देव की पूजा-पाठ भी नहीं होती. इसी ठाकुरबाड़ी में बंधक बनाये गये बेबस 34 ग्रामीणों की गला काट कर हत्या कर दी गयी थी.
दिल दहलाने वाली इस घटना में ग्रामीणों के पेट फाड़ कर शवों को इधर-उधर फेंक दिया गया था. नरसंहार के बाद से पट खुलने का इंतजार कर रहे इस ठाकुरबाड़ी में गांव के लोग नहीं जाते. ग्रामीणों का कहना है कि नरसंहार से पहले ठाकुरबाड़ी में दिन भर चहल-पहल रहती थी, लेकिन घटना के बाद से गांव की वीरानगी ने इसे भी लील लिया. ठाकुरबाड़ी के पुजारी (नरसंहार में बलि चढ़ गये) की विधवा सुशीला देवी ने बताया कि इस ठाकुरबाड़ी में अब भी मरघटी सन्नाटा पसरा है. अब यहां कोई नहीं जाता है. हर कोई चाहता है कि ठाकुरबाड़ी खुले, लेकिन अब कोई पहल नहीं करता है.
सेनारी गांव के लोग आज भी उस दिन को याद कर सिहर उठते हैं, जिस दिन सूरज ढलते ही 34 लोगों की जिंदगी में अंधेरा छा गया था. शाम को सात बजे हुई इस हृदय विदारक घटना ने पूरे प्रदेश में कोहराम मचा दिया था. हर तरफ इसी की चर्चा हो रही थी. गांव के लोग बताते हैं कि जिस तरह से परिवार के बाबा, चाचा, भाई-भतीजे को उग्रवादियों ने ठाकुरबाड़ी में ले जाकर हाथ-पैर बांध कर बारी-बारी से काट दिया, वह अमानवीय कृत्य था.
18 मार्च 1999 की शाम को अरवल के सेनारी गांव में एमसीसी के मेंबरों ने 34 सवर्णों की गला रेत कर हत्या कर दी थी. जबकि सात लोग गंभीर रुप से घायल हुए थे. गांव की चिंतामणि देवी ने करपी थाने में 15 नामजद समेत चार-पांच सौ अज्ञात हमलावरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. जिसके बाद से ही इस मामले में सुनवाई चल रही थी.

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