हक की खातिर व अन्याय के खिलाफ कुरबानी दी थी इमाम हुसैन ने यजीद की 22 हजार और इमाम हुसैन के मात्र 72 फौज के बीच हुई थी जंग जंग का गवाह है करबला जहानाबाद . कौनेन ने बुलंद है रूतबा हुसैन का , फरसे जमीं से अर्स तक सोहरा हुसैन का , बेमिसाल है जहां में कुनबा हुसैन का , सरकार दो जहां है नामा हुसैन का . बुराई के खिलाफ और हक की खातिर अपने और अपने परिवार की जान की कुर्बानी देने वाले इमाम हुसैन की याद में उपरोक्त पंक्तियां आज भी मुसलमानों की जुबां पर है और भविष्य में भी रहेगा . दसवीं मुहर्रम को नवीं की आलो औलाद ने हक को बचाने के लिए अपनी औलाद को भी करबला की धरती पर कुर्बान कर दिया था. हुआ यह था कि मदीना में रहने वाले मुस्लमानों के खलीफा अमीर माबिया सच्चे और अच्छे इंसान थे . उनका बेटा यजीद जो अत्याचारी था , जब माबिया की मौत हो गयी तो यजीद ने मौत की राज छुपाकर रखा और अपने को राजा घोषित कर दिया था . जो सभी मुस्लमानों को मंजूर नहीं था . इमाम हुसैन जो मुहम्मद सल्लाह अलैह बसलम के नवासे थे तक जब बात पहुंची तो उन्होंने यजीद की खिलाफत को नहीं माना . यजीद जिसे जालिम और फासिक कहा जाता है उन्होंने जबरन इमाम पाक को अपना बैत मानने को कहा था . यजीद की सोच थी कि यदि इमाम हुसैन उसे अपना रहबर मानेंगे तो सारे मुसलमानों पर उसका राज होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ . यजीद ने अपने अरमानों पर पानी फिरता देख जंग का ऐलान कर दिया. इमाम हुसैन ने अपना सारा कुनबा करबला के मैदान में लुटा दिया था . जंग के पूर्व इमाम हुसैन मदीना से मक्का चले गये थे . यजीद मक्का के लोगों को भी निशाना बनाने के फिराक में था इसे भांप कर इमाम हुसैन करबला के मैदान में अपना बसेरा बनाया और उस वक्त उनके पास मात्र 72 लोगों की फौज थी . यजीद ने अपने 72 हजार फौज के साथ करबला में इमाम हुसैन के ठीकानों पर हमला कर दिया . इमाम हुसैन के पुत्र को भी मार डाला और एक बार फिर इमाम हुसैन को अपना रहबर करने को कहा मगर अत्याचारी यजीद के आगे हुसैन नहीं झुके . आखरी सांस तक हक का दामन नहीं छोड़ा .
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हक की खातिर व अन्याय के खिलाफ कुरबानी दी थी इमाम हुसैन ने
हक की खातिर व अन्याय के खिलाफ कुरबानी दी थी इमाम हुसैन ने यजीद की 22 हजार और इमाम हुसैन के मात्र 72 फौज के बीच हुई थी जंग जंग का गवाह है करबला जहानाबाद . कौनेन ने बुलंद है रूतबा हुसैन का , फरसे जमीं से अर्स तक सोहरा हुसैन का , बेमिसाल है […]
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