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पेरोल पर छूटे विनय सिंह छिप कर रहते थे पटना में

जहानाबाद : छह फरवरी 1980 को हुए परसबिगहा नरसंहार का फैसला 31 मई 1984 को गया व्यवहार न्यायालय ने सुनाया था, जिसमें अभियुक्त बने 51 लोगों में से 34 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी. सात लोग रिहा हुए थे. बाकी बचे अन्य कई लोग फरारी के जीवन में ही दुनिया से […]

जहानाबाद : छह फरवरी 1980 को हुए परसबिगहा नरसंहार का फैसला 31 मई 1984 को गया व्यवहार न्यायालय ने सुनाया था, जिसमें अभियुक्त बने 51 लोगों में से 34 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी. सात लोग रिहा हुए थे.

बाकी बचे अन्य कई लोग फरारी के जीवन में ही दुनिया से चल बसे. इक्का-दुक्का बचे फरार लोगों में ही एक हैं परसबिगहा थाना क्षेत्र के पंडूयी निवासी विनय सिंह. परसबिगहा थाना कांड सं0-9/1980 के तहत इन्हें सजा सुनायी गयी थी और जेल में थे.

मगर जब नीतीश कुमार की सात दिनों की सरकार बनी थी, तो विनय सिंह को सात दिनों के पेरोल पर जेल से बाहर निकाला गया था. जेल से बाहर आने के बाद विनय सिंह ने पेरोल अवधि के बाद सरेंडर नहीं किया और फरारी का जीवन बिताने लगे. विनय सिंह की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस काफी दिनों से लगी थी.

अंतत: 18 सितंबर को पटना स्थित आवास से गिरफ्तार विनय सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. परसबिगहा नरसंहार के पीछे की पृष्ठभूमि को हम याद करें, तो बताया जाता है कि गांव के पूर्व मुखिया निंरजन सिंह की हत्या के प्रतिशोध में ही नरसंहार हुआ था.

परसबिगहा नरसंहार में करीब अठारह लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी, जिसमें यादव और गड़ेरी जाति के लोग शामिल थे. नरसंहार के ठीक दो दिनों के बाद ही परसबिगहा नरसंहार का बदला डोहिया लूट कांड के रूप में हुआ, जिसमें लुटेरों ने गांव को ही खंगाल दिया था. पकड़े गये विनय सिंह भी अब अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव में ही हैं. तकरीबन इनकी उम्र भी (70वर्ष) के करीब है. गांव का मकान क्षत-विक्षत हालत में है, जहां कोई रहनेवाला भी नहीं. फिलहाल वे पटना स्थित अपने आवास में ही रह रहे थे.

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