जहानाबाद : जान-माल की सुरक्षा को लेकर जरूरतमंद लोगों को हथियारों का लाइसेंस लेना टेढ़ी खीर है. जिले में राइफल, बंदूक या फिर रिवाल्वर का लाइसेंस देने की प्रक्रिया धीमी है. विगत तीन वर्षों में कई लोगों ने असलहा खरीदने के लिए आवेदन तो दिया, लेकिन जिला प्रशासन ने उसकी अनुमति नहीं दी. उक्त अवधि […]
जहानाबाद : जान-माल की सुरक्षा को लेकर जरूरतमंद लोगों को हथियारों का लाइसेंस लेना टेढ़ी खीर है. जिले में राइफल, बंदूक या फिर रिवाल्वर का लाइसेंस देने की प्रक्रिया धीमी है. विगत तीन वर्षों में कई लोगों ने असलहा खरीदने के लिए आवेदन तो दिया, लेकिन जिला प्रशासन ने उसकी अनुमति नहीं दी. उक्त अवधि में तीन या चार वैसे लोगों को ही हथियार खरीदने का लाइसेंस निर्गत किया गया, जिन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
उच्च न्यायालय के आदेश पर तत्कालीन डीएम द्वारा उन्हें लाइसेंस निर्गत किया गया था. बताया जाता है कि आवेदकों के असलहा संबंधित आवेदनों की जांच में ही लंबा समय बीत जाता है. हर तरह से कागजातों की जांच पूरी होने पर जिला दंडाधिकारी उस पर अपना अंतिम विचार करते हैं. उनकी नजर में कमी पाये जाने पर डॉक्यूमेंट जांच की प्रक्रिया दोबारा करायी जाती है और इस तरह बीत जाता है लंबा समय. फिलहाल जहानाबाद जिले के 630 लोगों के पास हथियारों के लाइसेंस हैं जो तीन साल के पहले के वर्षों में दिये गये थे. वर्ष 2017 में अब तक लाइसेंस के लिए करीब 10 आवेदन दिये गये हैं जिसे जांच के लिए संबंधित थाने में भेजा गया है.
फाॅर्म-3 में करना होता है आवेदन: किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को असलहा लेने के लिए शस्त्र अधिनियम 2016 के तहत जिला दंडाधिकारी के पास फाॅर्म-3 में विस्तृत ब्योरे के साथ आवेदन देना होता है. उसके साथ आवासीय प्रमाणपत्र, पहचानपत्र, आय प्रमाणपत्र संलग्न करना जरूरी है. हथियार खरीदने का क्या कारण है, इसका जिक्र भी करना जरूरी होता है. कागजात दुरुस्त रहने पर शस्त्र शाखा से जांच के लिए आवेदन थाने में भेजा जाता है. इसके बाद एसडीपीओ फिर एसडीओ और तब एसपी के पास आवेदन पहुंचता है. एसपी की अनुशंसा के बाद आवेदन पत्र पुन: जिलाधिकारी के पास आता है जिस पर वह विचार करते हैं. किसी तरह की कमी पाये जाने पर दोबारा जांच की प्रक्रिया करायी जाती है.
हथियार चलाने का सर्टिफिकेट रहना है जरूरी: आवेदकों के पास राइफल, बंदूक या रिवाल्वर चलाने के लिए उसकी ट्रेनिंग का प्रमाणपत्र रहना जरूरी है. मान्यता प्राप्त ट्रेनिंग सेंटर से प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं रहने पर आवेदन अस्वीकृत कर दिया जाता है. विडंबना यह है कि राज्य में ऐसा एक भी सेंटर नहीं है जहां लोग हथियार चलाने की ट्रेनिंग ले सकें.
यहीं पर कई आवेदकों के मामले लटक जाते हैं. बताया गया है कि आर्म्स रूल-2016 के लागू होने के बाद जरूरतमंद लोग कोलकाता या किसी दूसरे स्थान पर संचालित मान्यता प्राप्त संस्थान से ट्रेनिंग का सर्टिफिकेट लेने की जुगत भिड़ाते हैं. जानकारी दी गयी है कि हथियार का लाइसेंस लेने की चाहत रखने वालों में संपन्न किसान या संवेदकों की संख्या ज्यादा है जिन्हें जान-माल की सुरक्षा की चिंता सता रही है.