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जमुई में तीन माह में तेरह अगवा, दहशत

जमुई : जिले में अपहरण की घटना से लोगों में दहशत व्याप्त है. आंकड़ों पर गौर करें तो जिले में बीते तीन माह में अपराधियों ने तेरह लोगों का अपहरण कर लाखों रुपये वसूली किया है. जिसमें नौ जनवरी को ग्रामीण बैंक बोड़वा के शाखा प्रबंधक व कैशियर व दो फरवरी को झाझा के ही […]

जमुई : जिले में अपहरण की घटना से लोगों में दहशत व्याप्त है. आंकड़ों पर गौर करें तो जिले में बीते तीन माह में अपराधियों ने तेरह लोगों का अपहरण कर लाखों रुपये वसूली किया है. जिसमें नौ जनवरी को ग्रामीण बैंक बोड़वा के शाखा प्रबंधक व कैशियर व दो फरवरी को झाझा के ही रजला केनरा बैंक के शाखा प्रबंधक सहित एक अधिकारी को बैंक से वापस घर जाने के क्रम में रास्ते से अगवा कर लिया था.
चार फरवरी को लक्ष्मीपुर प्रखंड क्षेत्र के विशनपुर गांव से संवेदक हरीश यादव को रात्रि में उसके घर से, 12 फरवरी को खैरा थानाक्षेत्र के पूर्णाखैरा गांव निवासी एक डीलर हरि प्रकाश सिंह को घर जाने के क्रम में आठ बजे संध्या रास्ते से उठाया, 20 फरवरी को जमुई-बांका सीमा से बांका जिला के भैरोगंज बैंक शाखा प्रबंधक अजय कुमार लाल को, 11 मार्च को गिद्धौर थाना क्षेत्र के अलखपुरा निवासी दो व्यवसायी युवक मिथलेश व अजीत को अपराधियों ने घर जाने के दौरान रास्ते से अगवा कर लिया था.
बताते चलें कि करीब तीन माह पूर्व भी अपराधियों ने गिद्धौर अलखपुरा निवासी मिथलेश के भाई संजय व चचेरा भाई टिंकू को घर जाने के क्रम में रास्ते से अगवा कर लिया था. इसके अलावे प्रेम प्रसंग आदि में कई लड़के-लड़कियों को अगवा करने की घटना इसी बीच में घटित हुई है.
जिसमें सोलह जनवरी को झाझा से एक दलित छात्र, 20 जनवरी को झाझा के ही बरमसिया की एक छात्र का स्कूल गेट से, सत्ताईस जनवरी को सोनो प्रखंड क्षेत्र के औरेया गांव से श्रवण कुमार नामक एक युवक का घर से गायब होना शामिल है. अपराधियों के ऐसे कारनामों से खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने करने से कतराने लगे हैं. आम लोगों के सुविधा में बढ़ोतरी करने के उद्देश्य से सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में तरह-तरह के संस्थान खोलने का प्रयास कर रही है. लेकिन अपराधियों के बढ़ते कारनामों से सरकार की ऐसी मंशा विफल होता प्रतीत हो रही है. बताते चलें कि झाझा क्षेत्र में लगातार अपराधियों के शिकार हो रहे बैंक कर्मी अब सुदूर क्षेत्र में कार्य करने से ना-नुकुर करने लगे हैं.
नाम नहीं बताने की शर्त पर बैंक कर्मी बताते हैं कि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थान खोल देती है लेकिन सुरक्षा के नाम पर वैसे इलाकों में कुछ नहीं रहती हैं. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में नौकरी कर पाना कहीं से उपयुक्त नहीं है. बताते चलें कि उपयरुक्त सभी घटना में अपहृतों की रिहाई दो-चार दिन में होता रहा है. प्रत्येक रिहाई के बाद पुलिस घर पहुंचे अपहृतों को थाना ला कर पुलिस दबिश के कारण रिहाई होना बताती है. जो हकीकत से परे है.

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