झाझा के प्रबुद्ध लोगों द्वारा वर्ष 1965 के जुलाई महीने में झाझा इवनिंग कॉलेज के नाम से झाझा एवं आस-पास के विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा ग्रहण के लिए इसकी नींव रखी गयी थी. इसके पूर्व चालीस किलोमीटर के दायरे में एक ही उच्च शिक्षण संस्थान की व्यवस्था जुमई मुख्यालय में थी.कालांतर में समय बदलता गया एवं महाविद्यालय की स्थिति भी बदल गयी. 19 अप्रैल 1982 को सरकार ने इस महाविद्यालय का अधिग्रहण करते हुए विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाया एवं आस-पास के छात्रों के अलावे बड़ी संख्या में छात्र भी शिक्षित होने लगी. बताते चलें कि इस महाविद्यालय में कला एवं विज्ञान संकाय में इंटर एवं कई विषयों में प्रतिष्ठा स्तर तक की शिक्षा की व्यवस्था की गयी.
प्रत्येक वर्ष हजारों छात्र-छात्राएं इस महाविद्यालय में नामांकन करवा कर और परीक्षा देकर पास भी होते रहे. लेकिन वर्तमान में छात्रों को पढ़ाने के लिए प्राध्यापकों की संख्या नगण्य हो गये हैं. जिससे इस क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के पठन-पाठन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. छात्र बताते हैं कि महाविद्यालय में खेल-कूद, एनएसएस समेत कई कार्यक्रम होते रहते हैं. बावजूद इसके पठन-पाठन की स्थिति शिक्षकों की कमी रहने के चलते काफी प्रभावित हो रही है. इस बाबत पूछे जाने पर प्रभारी प्राचार्य प्रो अमरेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि छात्र-छात्रओं की बेहतर शिक्षा हेतु प्रयासरत हूं. महाविद्यालय में शिक्षकों की कमी के बाबत विश्वविद्यालय को जानकारी दी गयी है. शिक्षकों की रिक्त समाप्त होते ही बंद पड़े विषयों में पढ़ाई प्रारंभ की जायेगी. मेरा प्रयास महाविद्यालय के शैक्षणिक माहौल को अच्छा बना कर रखना है.