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शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले

शहीद सुनील कुमार मुर्मू ने बदल दी नक्सल प्रभावित गांव की तस्वीर खैरा : प्रखंड के नक्सल प्रभावित इलाके में पैदा हुआ एक बेटा शुक्रवार को अपनी मां के आंचल को लहू से सींचकर उसी मां की गोद में हमेशा के लिए सो गया. उस बेटे ने अपनी मां की लाज बचाने के लिए अपने […]

शहीद सुनील कुमार मुर्मू ने बदल दी नक्सल प्रभावित गांव की तस्वीर

खैरा : प्रखंड के नक्सल प्रभावित इलाके में पैदा हुआ एक बेटा शुक्रवार को अपनी मां के आंचल को लहू से सींचकर उसी मां की गोद में हमेशा के लिए सो गया. उस बेटे ने अपनी मां की लाज बचाने के लिए अपने सीने पर गोली खायी और हमेशा हमेशा के लिए उसी मिट्टी में खो गया. प्रखंड क्षेत्र के हरणी पंचायत अंतर्गत लंगड़ीटांड गांव में सन 1989 में जन्म हुआ था सुनील कुमार मुर्मू का. बताते चलें कि यह इलाका काफी नक्सल प्रभावित इलाका माना जाता है और यहां मुश्किल से ही लोग मुख्यधारा से जुड़ पाते हैं.
परंतु ऐसे पिछड़े इलाके में होने के बावजूद भी सुनील ने सन 2013 में सेना की नौकरी जॉइन की. सुनील के साथी बताते हैं कि सुनील काफी मृदुभाषी स्वभाव के थे तथा शर्मीले व्यवहार के भी थे. सीमा सुरक्षा बल से जम्मू कश्मीर से 124 वीं बटालियन से उनके पार्थिव शरीर के साथ उनके गांव आये उनके मित्र राजेश मुर्मू ने बताया कि सुनील हमेशा अपने गांव के बारे में सोचा करते थे. उसने बताया कि उनके मन में अपने गांव और गांव वालों के प्रति कुछ कर गुजरने की लालसा थी पर किस्मत को शायद यह मंजूर नहीं था. और वह पाकिस्तानी गोली का निशाना बन गये तथा उन्हें शहादत मिल गयी. पर सबसे बड़ी बात यह है कि सुनील की शहादत इस जिले के लिए गौरव और सम्मान की बात है.
नक्सल प्रभावित एक गांव जहां से लोग किसी भी प्रकार की कोई अपेक्षा नहीं करते, उस गांव से सुनील ने निकलकर यह दिखाया कि वीरता का कोई जाति, धर्म या मजहब नहीं होता. गांव वाले बताते हैं कि सुनील की शहादत के बाद उनका गांव सुनील के नाम से जाना जायेगा. यह उनके लिये काफी फख्र की बात है. उनके गांव पर नक्सल प्रभावित होने का ठप्पा मिट जायेगा. इसके अलावा उनके अंतिम संस्कार में पहुंचे जिलाधिकारी अपने गांव में सड़क और पुल निर्माण की बात भी कही है जिसे लेकर भी ग्रामीणों में काफी खुशी व्याप्त है. पर इन सब चीजों के बीच जो एक बात ताउम्र सुनील के परिजनों सहित पूरे जिले वासियों को कचोटती रहेगी वह सुनील के खोने का गम है. हर वर्ष अपनी शहादत दिवस पर सुनील हमें याद आएंगे. और यह पंक्ति भी हमें याद आएगी कि शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.

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