घालमेल . निजी नर्सिंग होम व फार्मेसी की मिलीभगत से रोगियों की बढ़ी परेशानी
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विक्रेता जो कहे, वही दवा लिख रहे डॉक्टर
घालमेल . निजी नर्सिंग होम व फार्मेसी की मिलीभगत से रोगियों की बढ़ी परेशानी कई दवा ऐसे हैं जिन्हें बेचकर दुकानदार कमाते हैं सौ से तीन सौ प्रतिशत मुनाफा जमुई : जिले में निजी नर्सिंग होम व फार्मेसी संचालक की मिलीभगत से चिकित्सा व्यवस्था को बौना बनाया जा रहा है. आलम यह है कि फार्मेसी […]
कई दवा ऐसे हैं जिन्हें बेचकर दुकानदार कमाते हैं सौ से तीन सौ प्रतिशत मुनाफा
जमुई : जिले में निजी नर्सिंग होम व फार्मेसी संचालक की मिलीभगत से चिकित्सा व्यवस्था को बौना बनाया जा रहा है. आलम यह है कि फार्मेसी संचालक चिकित्सक से मनमुताबिक दवाई लिखवाते हैं. इसके एवज में चिकित्सक फार्मेसी दुकानों से एक मोटी रकम कमीशन के तौर पर लेते हैं. जिसके बाद स्थिति यह बनती है कि चिकित्सक के द्वारा दुकानदार के मनमाफिक ही दवा लिखी जाती है. ये ऐसी दवाइयां होती है जिसपर कम लागत में सौ से तीन सौ प्रतिशत मुनाफा कमाया जाता है. इसके लिए निजी नर्सिंग होम में बाकायदा एक स्टाफ की तैनाती भी की जाती है, जो आने वाले मरीजों को यह बताता है कि दवाइयां उस औषधालय से ही लेनी है.
इन मेडिकल स्टोरों पर वही दवा भी रखी जाती है. दूसरे मेडिकल स्टोर पर यह दवा उपलब्ध नहीं होती. इससे चिकित्सक व मेडिकल स्टेार संचालकों की पौ बारह रहता है. इनका धंधा दिन-दूनी रात-चौगुनी तरक्की करता है. सबसे खास बात यह है कि इन मेडिकल स्टोर संचालकों के द्वारा सरकारी मानक का खुलेआम उल्लंघन किया जाता है. दवा रख-रखाव से लेकर सभी मापदंड का उल्लंघन किया जाता है. जिससे मरीजों लाभ होने के बजाये नुकसान होने की खतरा प्रबल हो जाता है.
नहीं मिलता है पक्का बिल
जिले के लगभग शत-प्रतिशत दवा दुकानों में एक बात काफी सामान्य है, व वो यह है कि यहां की दवा दुकानों में ग्राहकों को बिल मुहैया नहीं कराया जाता है. जबकि किसी भी प्रकार की मेडिकल सामग्री की खरीद-बिक्री करने पर पक्का बिल दिए जाने का प्रावधान है. जिसपर दुकान का नाम, उसका पंजीयन संख्या, दवा का नाम, मूल्य, वैट सहित अन्य सभी जानकारियों का अंकित होना अनिवार्य है. परंतु जिले में कहीं भी ऐसा होता दिख नहीं रहा है.
जमकर लूटते हैं मरीजों को
निजी अस्पतालों में खुली दवाई की दुकान के संचालक मरीजों को जमकर लूटते हैं. चिकित्सक भी वही दवा लिखते हैं, जो केवल अस्पताल के अंदर ही उपलब्ध हो. जिसके कारण मजबूरी में मरीजों को अंदर से ही दवा लेनी पड़ती है. ऐसे में ये दवा विक्रेता मरीजों को जमकर लूटते हैं. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि ये दवाइयां जेनेरिक होती हैं. जिसके कारण दवाइयों का ज्यादा लाभ नहीं होता.
क्या हैं नियम
एमसीआइ के नियमों के अनुसार किसी भी निजी अस्पताल में मेडिकल स्टोर नहीं खोला जा सकता. चिकित्सक केवल स्वास्थ्य सुविधाओं को देखते हुए खुद डिस्पेंसरी खोलकर सिर्फ जीवनरक्षक दवा ही मरीजों को सकते हैं.
बिना पुर्जे दवा की बिक्री
इन मेडिकल स्टोर पर बिना पुर्जे के भी दवाइयां धड़ल्ले से बेची जाती है. जबकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से ऐसा करने से पाबंदी है. लेकिन दुकानदार इसे नजरअंदाज कर चांदी काटने में लगे हैं. आलम यह है कि ऐसे दुकानों पर आने वाले लोग सीधे दवा खरीदते हैं व उसका सेवन कर लेते हैं. जिसके बाद इनके स्वास्थ्य पर भी खतरा बना रहता है. इस प्रकार से दवा बेचकर कई दुकानदार खूब कमा रहे हैं.
कई झोलाछाप डॉक्टर दवा दुकान का लाइसेंस लेकर चला रहे निजी क्लिनिक
नीम-हकीमों ने अपने धंधा सुरक्षित रखने के लिए नई तरकीब निकाली है. वे दवा की दुकान का लाइसेंस लेकर क्लीनिक चला रहे हैं. छापेमारी आदि की स्थिति में नीम-हकीम खुद को दवा विक्रेता बता कर बच जाते हैं. स्वास्थ्य विभाग भी उन्हें सहजता से लाइसेंस जारी कर रहा है. झोलाछाप चिकित्सक मेडिकल स्टोर का लाइसेंस लेकर मरीजों की जिंदगी के साथ खुलेआम खिलवाड़ करते हैं. मेडिकल स्टोर पर आने वाले हर प्रकार के रोगियों को बिना जांचे-परखे दवा दी जा रही है.
उन्हें यह भी पता नहीं कि मरीज को कितने डोज की दवा देनी है. यहां तक कि बच्चों को भी वही दवा दी जा रही हैं. जबकि इसे लेकर कार्यरत स्वास्थ्य विभाग की जांच विभाग केवल खानापूर्ति करने में लगा है.
सभी निजी अस्पतालों के अंदर नियमों को ताक पर रख खोली गयी है दवा की दुकान
निजी अस्पतालों में नियमों को ताक पर रखकर दवाई की दुकानें खुली हुई है. सूत्रों की मानें तो निजी अस्पतालों में खुली इन दवाई की दुकानों में से अधिकतर के पास लाइसेंस नहीं है. इन दवाई की दुकानों से लाखों रुपये का मुनाफा सालाना कमाया जा सकता है. वहीं विभाग के अधिकारियों को भी इस बारे में पता है, मगर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.
जमुई शहर के अलावा खैरा, सोनो, झाझा, सिकंदरा, अलीगंज में अनेक निजी अस्पताल खुले हुए हैं. इन अस्पतालों में अंदर ही मेडिकल स्टोर खुले हुए हैं. मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के नियमों के अनुसार किसी भी निजी अस्पताल में मेडिकल स्टोर नहीं खोला जा सकता. इसके लिए ड्रग रिटेलर का लाइसेंस होना चाहिए.
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