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धनेश्वरनाथ शिव मंदिर का है पौराणिक महत्व

जमुई : जमुई से 7 किलोमीटर दूर महादेव सिमरिया स्थित धनेश्वरनाथ शिव मंदिर की अपनी पौराणिक विशेषताएं हैं. लोगों की मान्यता है कि यहां भगवान शिव के मंदिर का निर्माण स्वयं हुआ है. इस हेतु इस मंदिर को स्वयंभू शिवालय भी कहा जाता है. सोमवारी को श्रद्धालु कांवर में जल भरकर पैदल चलकर मंदिर पहुंचते […]

जमुई : जमुई से 7 किलोमीटर दूर महादेव सिमरिया स्थित धनेश्वरनाथ शिव मंदिर की अपनी पौराणिक विशेषताएं हैं. लोगों की मान्यता है कि यहां भगवान शिव के मंदिर का निर्माण स्वयं हुआ है. इस हेतु इस मंदिर को स्वयंभू शिवालय भी कहा जाता है. सोमवारी को श्रद्धालु कांवर में जल भरकर पैदल चलकर मंदिर पहुंचते हैं और बोलबम के नारे से पूरा महादेव सिमरिया गुंजायमान हो जाता है. लोगों का मानना है कि देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने रातों रात अपने हाथों से भगवान शिव के इस मंदिर का निर्माण किया था.

मंदिर निर्माण को लेकर यहां तरह-तरह की किवदंतिया प्रचलित है. उनमें से यहां प्रचलित कथा के अनुसार करीब दस दशक पहले गिद्धौर रियासत के राजा महाराजा चंद्रचूड़ सिंह की भक्ति आस्था से वशीभूत हो भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न देकर बाबा धनेश्वरनाथ का भान कराया था. जानकारी के अनुसार महाराजा गिद्धौर प्रतिदिन घुड़सवारी कर भगवान शिव की सुबह-सुबह पूजा अर्चना करने जमुई से देवघर जाया करते थे. ढलते उम्र और अस्वस्थता के वजह से वे दो-तीन दिन भगवान शंकर की पूजा नहीं करने पर काफी चिंतित थे. तभी उन्होंने भगवान शिव को स्मरण कर कहा कि हे भगवन कोई उपाय करें ताकि मैं आपसे दूर ना हो सकूं.
अपने अन्नय भक्त की भावना से प्रेरित होकर भगवान शिव ने एक रात उन्हें स्वप्न में कहा कि हे राजा चिंता मत कर मैं तुम्हारे काफी करीब आ गया हूं. तुम अब मेरी पूजा अपने राज्य में भी कर सकते हो. मैं तुम्हारे राज्य के सिमरिया स्थित एक तालाब के बीच आज की रात स्थापित हो चुका हूं. राजा की आंखें खुल गईं. उन्हें अपने सपने पर विश्वास नहीं हो रहा था.
वह उधेड़बुन की स्थिति में आ गए थे. अंततः राजा से रहा नहीं गया और अहले सुबह ही वे अपने घोड़ा पर सवार होकर सिमरिया गांव की ओर निकल पड़े. वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा की भगवान शिव का एक विशाल मंदिर बना है जिसमें शिवलिंग स्थापित है. महाराजा ने उसी समय उक्त तालाब में स्नान कर उसे शिवगंगा का नाम दिया और भगवान शिव की पूजा कर उस गांव का नाम सिमरिया से बदल कर महादेव सिमरिया कर दिया. और तब लेकर आज तक बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है. ऐसी मान्यता है कि जो लोग यहां सच्चे मन से कामना करते हैं उसकी कामना की पूर्ति बाबा धनेश्वरनाथ की कृपा से अवश्य पूरी हो जाती है.
सालों भर भक्तों की भीड़ रहता है बाबा धनेश्वरनाथ मंदिर में, जबिक सावन सोमवारी पर भक्तों का शैलाब उमड़ पड़ता है
मंदिर की विशेषता है कि सालों भर बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर में भक्तों की भीड़ देखने को मिलता है. सावन माह में भक्तों का शैलाब उमड़ पड़ता है. अन्य दिनों में इस मंदिर शादी-विवाह, मंडन आदि को लेकर भी लोगों यहां काफी भीड़ रहता है. इस मंदिर के चारों और शिवगंगा बना हुई है. बाबा धनेश्वरनाथ का गर्भगृह द्वार पूरब दिशा की ओर है. जबकि बाबा मंदिर के सामने पूरब की ओर मां पार्वती मंदिर सहित इस परिसर में सात देवी-देवता के मंदिर हैं. बाबा घनेश्वरनाथ मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर राधा-कृष्ण मंदिर भी हैं.लोग बाबा की पूजा-अर्चना के उपरांत राधा-कृष्ण मंदिर पहुंच भी पूजा अर्चना कर अपनी कुशलता की कामना करते हैं.
दूसरे कथा के अनुसार उसी समय में धनवे गांव निवासी धनेश्वर नामक कुम्हार जाति का व्यक्ति मिट्टी का बर्तन बनाने हेतु प्रत्येक दिन की भांति मिट्टी लाया करता था. अचानक एक दिन मिट्टी लाने के क्रम में उसके कुदाल से एक पत्थर टकराया. उस पर कुदाल का निशान पड़ गया. उसने उस पत्थर को निकालकर बाहर कर दिया. अगले दिन पुन: मिट्टी लेने के क्रम में वह पत्थर उसी स्थान पर मिला. बार-बार पत्थर निकलने से तंग आकर धनेश्वर ने उसे दक्षिण दिशा में कुछ दूर जाकर गड्ढा कर उसे मिट्टी से ढक दिया. उसी दिन मानें तो जैसे रात्रि महारात्रि सा लग रहा था. और रातों रात उक्त स्थान पर मंदिर का निर्माण हो गया. चुकि कुंभकार की मिट्टी खुदाई के दौरान यह शिवलिंग प्रकट हुआ था. इस कारण महादेव सिमरिया में ब्राह्माणों की जगह आज भी कुंभकार ही पंडित का कार्य करते हैं.

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