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मजदूरों की लगी है बोली, काम की तय होती है कीमत

गोपालगंज : सुबह के 6.30 बजे हैं. लगभग 150 की संख्या में टोकरी, कुदाल लिये मजदूर खड़े हैं. कुछ लोग बोली लगाने वाले भी पहुंचे हैं. यह नजारा है शहर के गांधी कॉलेज के पास स्थित सड़क पर. सब्जी मंडी, गला बाजार, इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट के तरह गांधी कॉलेज के सामने का स्थल मजदूर बाजार के […]

गोपालगंज : सुबह के 6.30 बजे हैं. लगभग 150 की संख्या में टोकरी, कुदाल लिये मजदूर खड़े हैं. कुछ लोग बोली लगाने वाले भी पहुंचे हैं. यह नजारा है शहर के गांधी कॉलेज के पास स्थित सड़क पर. सब्जी मंडी, गला बाजार, इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट के तरह गांधी कॉलेज के सामने का स्थल मजदूर बाजार के रूप में जाना जाता है. यहां जिले के विभिन्न क्षेत्रों से अहले सुबह मजदूर पहुंचते है और इंतजार करते हैं काम का. कई बार ऐसा भी होता है कि जब कोई खरीदार नहीं आता तो ये मजदूर वापस चले जाते हैं.

शहर में यह सिलसिला एक दशक से चल रहा है. आम से लेकर खास तक इस मजदूर स्थल को जानते हैं लेकिन इनके उत्थान के लिए आज तक कोई प्रयास नहीं हुआ. इनके लिए एक शेड तक नहीं डाला गया. अधिकतर के पास जॉब कार्ड नहीं है. सवाल यह है कि जब इन्हें रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत काम मिलता, तो आखिर यह पैसे खर्च कर शहर क्यों आते. मौसम चाहे जो भी हो न तो इनके आने का सिलसिला रुका है और न इनके जीवन को बदलने का कभी प्रयास हुआ.

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