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पितरों की आत्मा की शांति के लिए कीजिए श्राद्ध

गोपालगंज : श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. पूर्वज और पितर 15 दिन के लिए अपने वंशजों के दरवाजे पर आ गये है. शास्त्रों के मुताबिक, पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है कि पितर अपने वंशजों की उन्नति व खुशहाली की कामना करते हुए स्वर्ग लोक को चले जाते […]

गोपालगंज : श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. पूर्वज और पितर 15 दिन के लिए अपने वंशजों के दरवाजे पर आ गये है. शास्त्रों के मुताबिक, पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है कि पितर अपने वंशजों की उन्नति व खुशहाली की कामना करते हुए स्वर्ग लोक को चले जाते हैं, लेकिन इन पवित्र दिनों को लेकर तमाम भ्रांतियां भी हैं. मसलन, श्राद्ध पक्ष में खरीदारी करना शास्त्र सम्मत नहीं है. यह भ्रांति बाजार के लिए अरबों के नुकसान की वजह बन जाती है. हकीकत यह है कि शास्त्रों में ऐसा कही भी वर्णित नहीं है. विद्वान पंडितों के मुताबिक, श्राद्ध पक्ष में की गयी खरीदारी को पितरों का आशीर्वाद मिलता है.

इसलिये जम कर खरीदारी कीजिए. महर्षि अनिल शास्त्री ने साफ तौर पर कहा कि यह बात पूरी तरह निराधार है कि श्राद्ध पक्ष में खरीदारी नहीं करनी चाहिए. शास्त्रों में ऐसा कहीं वर्णित नहीं है. भारत के कई प्रदेशों में तो लोग पितरों का आशीर्वाद लेने को विशेष रूप से खरीदारी करते हैं. भगवान श्रीराम का विवाह श्राद्ध पक्ष में ही हुआ था. एकादशी के दिन माता जानकी और भगवान श्रीराम का स्वयंवर हुआ. कई क्षेत्रों में श्रीराम बरात भी इस दिन निकलती है.

इन वस्तुओं का करें प्रयोग
पंडित कैलाश मुरारी के अनुसार किसी भी श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए. केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध और घी, खीर, स्वांक का चावल, जो मूंग व गन्ने से किये गये श्राद्ध से पितर अति प्रसन्न होते हैं. तुलसी, आम और पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने के साथ सूर्य देवता को सुबह अर्घ देना चाहिए. तर्पण और पूजन के समय चांदी के पात्रों का प्रयोग लाभदायक होता है.
सफेद या पीले वस्त्र ही पहनें
पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें. जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं.
मृत्यु तिथि याद न हो तो इस दिन करें तर्पण
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा:– नाना–-नानी के श्राद्ध के लिए तिथि सही बतायी गयी है. यदि नाना–-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करनेवाला न हो और उनकी मृत्यु तिथि याद न हो, तो नाती से इस दिन उनका श्राद्ध करा सकते हैं.
–पंचमी :– जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए.
–नवमी :– सौभाग्यवती यानी पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गयी हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है. यह तिथि श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गयी है. इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं. मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है.
–एकादशी और द्वादशी :– एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं. यानी इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किये जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो.
–चतुर्दशी:– इस तिथि में शस्त्र, आत्महत्या, विष और दुर्घटना यानी जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध पक्ष की त्रयोदशी को करने के लिए कहा गया है.
सर्वपितृमोक्ष अमावस्या :– किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गये हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है. यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए. बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्ध पक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए.
मंत्र विशेष
पंडित मुरारी के अनुसार श्राद्ध कर्म करनेवालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए. यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करनेवाला अमृतमंत्र है. अनाधि निधनों देव शंख चक्र गदाधर, केशवों पुंडरीकाक्ष पितृ प्रदोपभत.

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