कम लागत में भी जौ की भरपूर उपज पशु आहार के रूप में खासी मांग से बाजार में समस्याकम खाद-पानी में भी चल जाता है कामगोपालगंज. जौ की खेती कई मायनों में गेहूं से बेहतर है. कम खाद-पानी में होने के नाते इसमें लागत कम आती है. किसी भी भूमि में पैदा होना भी इसकी खूबी है. पशु आहार के रूप में इसकी खासी मांग है. जौ की खेती से पिछले कुछ सालों से लोगों की रुचि घटी है. हालांकि जौ सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. पूजा-पाठ के अलावा जौ के औषधीय गुण सोने पर सुहागा है. कृषि वैज्ञानिक आरपी प्रसाद की मानें, तो हर किसान को आज जौ की खेती आवश्यक हो गयी है. कब और कैसे करें बोआई : बोआई का उचित समय पूरा नवंबर है. मध्य दिसंबर तक बोआई जरूर कर लें. प्रति हेक्टेअर 75 किग्रा बीज की जरूरत होती है. जहां सिंचाई का साधन न हो या बोआई में देर हो रही हो, तो वहां बीज की मात्रा 100 किग्रा रखे. लाइन से बोआई करने पर उपज बढ़ जाती है. नरेंद्र जौ-2 के – 287, 409 और 603 आदि अधिक उपज देनेवाली प्रजातियां हैं. खेत की अंतिम तैयारी के समय प्रति हेक्टेअर में 30:30:20 किग्रा की दर से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश डाल कर बोआई करें. नाइट्रोजन की इतनी ही मात्रा का प्रयोग पहली सिंचाई के बाद करें. अगर जमीन उसर है, तो 20-25 किग्र्रा सल्फेट डालने का नतीजा बेहतर रहता है. सिंचित असिंचित दोनों तरह की भूमि पर इसकी खेती संभव है. साधन हो तो मात्र दो सिंचाई की जरूरत होती है न हो तो दुग्धावस्था की मात्र एक सिंचाई से भी कम चल जाता है काम. समय से बोआई एवं सिंचाई, संतुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग, उन्नत प्रजातियों के प्रयोग और फसल सुरक्षा के उचित उपाय करने से प्रति हेक्टेअर 30-45 क्विंटल तक उपज संभव है.
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कम लागत में भी जौ की भरपूर उपज
कम लागत में भी जौ की भरपूर उपज पशु आहार के रूप में खासी मांग से बाजार में समस्याकम खाद-पानी में भी चल जाता है कामगोपालगंज. जौ की खेती कई मायनों में गेहूं से बेहतर है. कम खाद-पानी में होने के नाते इसमें लागत कम आती है. किसी भी भूमि में पैदा होना भी इसकी […]
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