गोपालगंज : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर सूर्य और छठ पूजन के शुभारंभ के समय को लेकर तमाम कथाएं प्रचलित हैं. कई कथाओं का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. महाराज मनु के पुत्र ने छठपूजा की थी. भगवान राम ने भी लंका पर विजय के उपरांत षष्ठी तिथि के दिन […]
गोपालगंज : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर सूर्य और छठ पूजन के शुभारंभ के समय को लेकर तमाम कथाएं प्रचलित हैं. कई कथाओं का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. महाराज मनु के पुत्र ने छठपूजा की थी. भगवान राम ने भी लंका पर विजय के उपरांत षष्ठी तिथि के दिन भगवान सूर्य का पूजन-अर्चन किया था.
षष्ठी तिथि पर इन कथाओं को भी सुनने की प्रथा है. भूदेव संस्कृत स्कूल के प्राचार्य पं आनंदेश्वरी मिश्र के मुताबिक ब्रह्मावैवर्त पुराण प्रकृति खंड में वर्णन है कि महाराज मनु और सतरूपा के पुत्र प्रियवर्त ने सर्वप्रथम छठ माता और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य की उपासना की थी. प्रियवर्त व उनकी पत्नी मालिनी पुत्र प्राप्ति न होने से परेशान थे.
तब महर्षि कश्यम ने उन्हें सूर्य उपासना की सलाह दी थी. उन्हें पुत्र तो प्राप्त हुआ, लेकिन वह मृत था. षष्ठी माता प्रकट हुई और उपासना करने को कहा. व्रत से पुत्र जीवित हो उठा. इसके बाद पूरे राज्य में उत्सव मनाया गया.
सूर्य के उपासक थे कर्ण : कुंती पुत्र कर्ण का जन्म ही भगवान सूर्य की उपासना से हुआ था. कर्ण भगवान सूर्य के उपासक थे. भगवान आदित्य की कृपा का ही परिणाम था कि उन्हें पराजित करना अर्जुन व अन्य पांडवों के लिए मुश्किल भरा काम था. उन पर अजुर्न तभी विजय प्राप्त कर सके जब भगवान श्रीकृष्ण और भगवान सूर्य ने उन पर कृपा की.
श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने की पूजा: भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जांबवती से उत्पन्न पुत्र शाम्ब बहुत सुंदर थे. किसी कारणवश भगवान कृष्ण ने उन्हें शाप दे दिया, तो वे कुष्ठ रोगी हो गये. यह निश्चित हुआ कि सूर्य उपासना से ही कुष्ठ से मुक्ति मिल सकती है. शक द्वीपों से आये आचार्यों ने सूर्य उपासना की, तब जाकर शाम्ब कुष्ठ रोग से मुक्ति पा सके.