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चुनाव के चक्रव्यूह में उलझा फुलवरिया गांव

चुनाव के चक्रव्यूह में उलझा फुलवरिया गांवराजद सुप्रीमो के गांव को है बिहार की सत्ता पाने की उम्मीदबिहार की राजनीति से एक दशक से आउट हो चुका है यह गांवयह विधानसभा का चुनाव तय करेगा फुलवरिया की तकदीरफोटो-15 पुरानासंवाददाता, फुलवरियाफुलवरिया गांव. दिन बुधवार. दोपहर के एक बजे थे. इस विधानसभा चुनाव से फुलवरिया की तकदीर […]

चुनाव के चक्रव्यूह में उलझा फुलवरिया गांवराजद सुप्रीमो के गांव को है बिहार की सत्ता पाने की उम्मीदबिहार की राजनीति से एक दशक से आउट हो चुका है यह गांवयह विधानसभा का चुनाव तय करेगा फुलवरिया की तकदीरफोटो-15 पुरानासंवाददाता, फुलवरियाफुलवरिया गांव. दिन बुधवार. दोपहर के एक बजे थे. इस विधानसभा चुनाव से फुलवरिया की तकदीर तय होनी है. पूरी तरह से यह गांव चुनावी चक्रव्यू में उलझा हुआ है. बिहार की राजनीति से यह गांव एक दशक से आउट है. एक दशक में फुलवरिया के लोगों ने उपेक्षा का दंश झेला है. गांव की बदहाली पर कोई अधिकारी सुनता भी नहीं. इसका मलाल पूरे गांव को है. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के पैतृक घर के आगे पीपल के पेड़ के नीचे रोज की तरह गांव के बुजुर्ग से लेकर युवा तक बैठ कर चुनाव की चर्चा में डूबे थे. तीन चरणों का चुनाव हो चुका है. महागंठबंधन की बेहतर स्थिति का दावा कर फुलवरिया को उम्मीद है कि इस बार फिर राजद सुप्रीमो के नेतृत्ववाली महागंठबंधन सरकार बनायेगी. सरकार महागंठबंधन की बनी, तो फुलवरिया का खोया हुआ अस्तित्व वापस लौट जायेगा. बता दें कि 1990 के पूर्व फुलवरिया गांव पूरी तरह से बदहाल था. यहां से तीन फुट पानी बरसात में पार कर गांव के लोग मुख्य सड़क और बाजार तक पहुंचते थे. तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस मिट्टी में जन्म लेनेवाला बिहार का मुख्यमंत्री बनेगा. लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उन्होंने अपनी मिट्टी का कर्ज चुकाया. फुलवरिया तक आने के लिए मीरगंज से टू लेन सड़क का निर्माण कराया. घर – घर जाने के लिए पीसीसी सड़क बनी. शुद्ध पेयजल के लिए हर घर में पाइप लाइन बिछायी गयी. पावर सब स्टेशन बनाया गया. फुलवरिया में प्रखंड कार्यालय, थाना, रजिस्ट्री कचहरी, हाइस्कूल, डाकघर, रेफरल अस्पताल, स्टेट बैंक, सरोवर बनाया गया. वर्ष 2005 तक बिहार की सत्ता के मुख्य केंद्र में यह गांव रहा. डीएम से लेकर मुख्य सचिव तक का दरबार यहां लगता था. 2007 में फुलवरिया को रेलवे लाइन से जोड़ा गया. तब लालू प्रसाद रेलमंत्री बन चुके थे. किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि शहरों जैसा विकसित यह गांव होगा. लेकिन, बिहार की सत्ता से आउट होते ही इस गांव की दुर्दशा शुरू हो गयी. यहां चबूतरे पर राजद सुप्रीमो के बड़े भाई के पुत्र रामानंद यादव बताते हैं कि महीनों से ट्रांसफाॅर्मर जला था. काफी प्रयास करने के बाद लगा. अब महीने में एक आद दिन ही पाइप लाइन से शुद्ध पानी की सप्लाइ होती है. ऑपरेटर कहां रहते हैं किसी को नहीं पता. पीसीसी सड़क जो बनायी गयी थी, वह भी उखड़ने लगी है. अब तो इस गांव की समस्याओं पर बीडीओ भी चुप्पी साध लेते हैं. उनकी बगल में बैठे अरुण यादव दावा करते हैं कि इस बार सरकार बनी, तो गांव की प्रतिष्ठा पुन: वापस आ जायेगी. नरसिंग गुप्ता कहते हैं कि बदले की भावना से भाजपा के साथ जदयू ने मिल कर फुलवरिया के साथ उपेक्षा की. सिर्फ फुलवरिया को ही नहीं बल्कि इस जिले के साथ भी उपेक्षा हुई. बगल में बैठे सुदामा यादव, राजेश यादव, लव कुश यादव, प्रभुनाथ गुप्ता आदि के चेहरे खिले थे. आत्मविश्वास से कहने लगे कि अबकी बार त फुलवरिया के ही राज लौटी.

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