उपेक्षा. जिला मुख्यालय से महज छह किलोमीटर दूर है मां भवानी का मंदिर
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पर्यटन स्थल का दर्जा िमला, सुविधाएं नहीं
उपेक्षा. जिला मुख्यालय से महज छह किलोमीटर दूर है मां भवानी का मंदिर गोपालगंज : सूबे का सुप्रसिद्ध थावे मां भवानी मंदिर को सरकार ने पर्यटन स्थल का दर्जा तो दे दिया है, लेकिन पर्यटन स्थल थावे को वर्षों से सर्वांगीण विकास का इंतजार है. मंदिर परिसर व उसके आसपास पर्यटकों के ठहरने के लिए […]
गोपालगंज : सूबे का सुप्रसिद्ध थावे मां भवानी मंदिर को सरकार ने पर्यटन स्थल का दर्जा तो दे दिया है, लेकिन पर्यटन स्थल थावे को वर्षों से सर्वांगीण विकास का इंतजार है. मंदिर परिसर व उसके आसपास पर्यटकों के ठहरने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा उचित व्यवस्था नहीं की गयी है. पर्यटन विभाग ने यहां एक भी होटल, लॉज या गेस्ट हाउस का निर्माण नहीं कराया है. इससे दूर-दराज से आये पर्यटकों को काफी परेशानी होती है. जहां एक ओर पर्यटन स्थलों को सरकार देश-दुनिया के मानचित्र पर उतारना चाहती है. वहीं, दूसरी ओर सरकार थावे के विकास के लिए उचित पहल नहीं कर रही है.
न ही यहां पर्यटकों के ठहरने के लिए उचित व्यवस्था है और न ही उन्हें बैठने या समय बीताने के लिए पार्क बनाया गया है. सिर्फ मंदिर व उसके आसपास ही शेड व तालाब का निर्माण किया गया है और वर्तमान समय में परिक्रमा एरिया बनाने का काम चल रहा है.
परिचय
पर्यटन स्थल थावे मां भवानी के मंदिर को लेकर देश व दुनिया में सुप्रसिद्ध है. मां थावेवाली को सिंहासिनी भवानी, रहघु भवानी और थावे भवानी भी कहा जाता है. असम राज्य के कामरूप जिले में मां दुर्गा का कामख्या मंदिर है. वहीं से मां भवानी चलकर थावे आयीं थीं. इसलिए इसको कामरूप कामख्या भी कहा जाता है. मां भवानी के यहां आगमन को लेकर जंगल में ही मंदिर की स्थापना सैकड़ों साल पहले तत्कालीन राजघराने ने कराया था. मंदिर की ऐतिहासिकता व महत्व को देखते हुए बिहार सरकार ने इसे पर्यटन स्थल की सूची में शामिल कर लिया है.
ऐतिहासिकता
प्राचीन काल में थावे में माता कामख्या के बहुत सचे भक्त श्री रहषु भगत जी रहते थे. वे माता की बहुत सच्चे मन से भक्ति करते थे और माता भी उनकी भक्ति से प्रसन्न थी. माता की कृपा से उनके अंदर बहुत सी दिव्य शक्तियां भी थीं. लेकिन, तत्कालीन राजा मनन सिंह को उनकी भक्ति पसंद नहीं थी. वे रहषु भगत जी को ढोंगी-पाखंडी समझते थे. एक दिन राजा ने अपने सैनिकों को रहषु भगत जी को पकड़कर दरबार में लाने का आदेश दिया. दरबार में आने पर राजा ने रहषु भगत जी को ढोंगी-पाखंडी आदि अभद्र शब्दों का प्रयोग कर अपमानित किया और उनके माता के सच्चे भक्त होने का मजाक उड़ाया. रहषु भगत जी ने राजा को विनम्रता पूर्वक समझाया कि माता की कृपा से ही मैं सबकुछ करता हूं और मेरी भक्ति से प्रसन्न होकर वे मुझे दर्शन भी देती हैं. राजा मनन सिंह के घर भी माता की पूजा होती थी, लेकिन माता ने कभी दर्शन नहीं दिया था. रहषु भगत जी एक अछूत जाती के थे और माता उनको दर्शन देती हैं यह बात सुनते ही राजा अत्यंत क्रोधित हो उठे और भगत जी को चुनौती दिये कि यदि तुम वास्तव में माता के सच्चे भक्त हो, तो मेरे सामने माता को बुलाकर दिखाओ नहीं तो तुम्हे दंड दिया जायेगा. भगत जी ने राजा को बार-बार और विनम्रता पूर्वक समझाया की महाराज अगर माता प्रकट हो गयीं तो अनर्थ हो जायेगा. इसलिए आप अपना हठ छोड़ दीजिये और सच्चे मन से माता की भक्ति कीजिये. लेकिन, राजा अपने हठ पर अड़े रहे. अब भगत जी के पास माता को बुलाने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं बचा था. उन्होंने ने माता का आह्वान किया. माता ने कामरूप से प्रस्थान किया और कोलकाता, पटना, आमी आदि स्थानों से होते हुए थावे पहुंचीं. माता ने भगत जी के मस्तक को फाड़कर अपना कंगन दिखाया. उनके आगमन से पूरे राज्य में प्रलय जैसी स्थिति हो गयी. राजा और उनके राजपाट का अंत हो गया.
महत्व
मां थावेवाली बहुत कृपालु और दयालु हैं. अपनी शरण में आये भक्तों का हमेशा कल्याण करतीं हैं. यहां दूर-दराज से आये भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यहां सच्चे मन से पूजा करनेवाले लाखों लोगों की मनोकामना पूरी भी हो चुकी है. चैत्र व शारदीय नवरात्र में यहां काफी भीड़ उमड़ती है. इसके अलावा सावन के महीने में देवघर की यात्रा करने वाले आसपास के जिले के श्रद्धालु पहले मां भवानी की पूजा करते हैं और उसके बाद ही यात्रा शुरू करते हैं.
कैसे पहुंचें
थावे सुगमता से पहुंचा जा सकता है. यहां आने के लिए सड़क व रेल दोनों सुविधाएं मौजूद हैं. गोपालगंज जिला मुख्यालय से दक्षिण दिशा में करीब छह किलोमीटर व सीमावर्ती जिले सीवान से करीब 26 किलोमीटर उतर दिशा में एनएच 85 पर थावे स्थित है. यहां बड़ी रेल लाइन की ट्रेन सुविधा के लिए गोरखपुर, छपरा व सीवान होकर पहुंचा जा सकता है.
पूर्वोत्तर रेलवे का थावे जंक्शन यहां स्थापित है.
बजट
पर्यटन विभाग द्वारा यहां वर्षों पूर्व तालाब का निर्माण कराया था. इसके बाद एक बार करीब 84 लाख रुपये का बजट पास हुआ, जिससे शेड व फर्श निर्माण सहित अन्य कार्य भी हुए. वर्तमान समय में पर्यटन विभाग द्वारा दो करोड़ रुपये का बजट पास किया गया है. इसी राशि से परिक्रमा एरिया व उसके ऊपर शेड का निर्माण कराया जा रहा है.
ठहरने का प्रबंध
श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए सरकारी इंतजाम तो उतने अच्छे नहीं हैं, लेकिन निजी दर्जनों गेस्ट हाउस, होटल व लॉज यहां बनाये गये हैं. यहां श्रद्धालु अपनी सुविधा के अनुसार ठहर सकते हैं. काफी कर्म खर्च करने पर भी यहां ठहरा जा सकता है.
पर्यटकों की स्थिति
यहां हर साल पर्यटकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. प्रतिदिन यहां औसतन एक हजार श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने आते हैं. सोमवार व शुक्रवार को इस संख्या में पांच गुना वृद्धि हो जाती है. वहीं, नवरात्र के नौ दिनों, सावन के तीस दिनों और चैत में लगने वाले तीस दिनों के मेला में तो यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
बाजार की स्थिति
मंदिर परिसर व उसके आसपास पूजन सामग्रियों की दर्जनों दुकानें हैं. इसके अलावा खाने-पीने व नाश्ता के लिए कई होटल भी मंदिर से थोड़ी ही दूर पर स्थित हैं. वहीं, महज एक किलोमीटर की दूरी पर थावे बाजार भी स्थापित है, जहां आपको अपनी जरूरत के सभी सामान मिल जायेंगे.
सुविधा
मंदिर के पांच सौ मीटर की दूरी पर थाना व अस्पताल है तो एक किलोमीटर के दायरे पर बस स्टैंड व रेलवे जंक्शन स्थापित है. इसके साथ ही मंदिर परिसर में बीएमपी के जवान 24 घंटे तक मंदिर की सुरक्षा में तैनात रहते हैं. सरकार ने यहां दो गेस्ट हाउस भी बनाया है.
कहते हैं अधिकारी
थावे के विकास को लेकर पर्यटन विभाग द्वारा बजट पास किया जाता है. पर्यटन विभाग द्वारा राशि आवंटित होने पर विकास कार्य होता है. मंदिर समिति की बैठक में प्रस्ताव पारित होते हैं तो उसे विभाग व जिला प्रशासन को उपलब्ध कराया जाता है.
मीनू कुमारी, बीडीओ, थावे
कहते हैं कारोबारी
कारोबारी विकास सिंह व अशोक कुमार गुप्ता कहते हैं आम दिनों में शुक्रवार व सोमवार को, चैत्र मेला, सावन और नवरात्र के समय यहां अच्छी दुकानदारी हो जाती है. यहां बिहार, यूपी, एमपी व अन्य राज्य से श्रद्धालु आते हैं. सरकार को पर्यटकों के ठहराव के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए.
क्या कहते हैं लोग
थावे निवासी ललन शर्मा व कमलाकांत उपाध्याय कहते हैं कि यहां बस स्टैंड, श्रद्धालुओं के जूता-चप्पल रखने की जगह, बैठने की जगह व पार्क की व्यवस्था नहीं है. इससे श्रद्धालुओं को परेशानी होती है. पर्यटन स्थल के विकास के लिए सरकार को उचित पहल करनी चाहिए.
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