बताया जाता है कि गया नगर निगम ने जनता से वसूले गये राजस्व से तीन करोड़ 20 लाख रुपये पीएचइडी विभाग को दिये थे, इस उम्मीद से कि नाली बनेगी तो लोगों को सहूलियत होगी, लेकिन यह योजना कागजों के पुलिंदे से बाहर नहीं निकल सकी. बताया जाता है कि 10 साल पहले यानी वर्ष 2006 में पीएचइडी को नाला निर्माण के लिए नगर निगम की ओर से तीन करोड़ 20 लाख रुपये दिये गये थे, लेकिन नाले का निर्माण नहीं किया गया. बताया जाता है कि फंड वापस करने के लिए नगर आयुक्त ने पीएचइडी विभाग को कई बार पत्र लिखा. पत्र का जवाब तो आया, लेकिन रुपये नहीं आये.
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डीपीआर में ही सिमट कर रह गयी नाला परियोजना
गया: पीएचइडी विभाग को 10 साल पहले एक नाली परियोजना के लिए तीन करोड़ 20 लाख रुपये दिये गये थे लेकिन इन 10 वर्षों में इस परियोजना पर न तो कोई काम हुआ और न ही रुपये लौटाये गये. मजे की बात तो ये है कि इस मामले में किसी अधिकारी या कर्मचारी पर कोई […]
गया: पीएचइडी विभाग को 10 साल पहले एक नाली परियोजना के लिए तीन करोड़ 20 लाख रुपये दिये गये थे लेकिन इन 10 वर्षों में इस परियोजना पर न तो कोई काम हुआ और न ही रुपये लौटाये गये. मजे की बात तो ये है कि इस मामले में किसी अधिकारी या कर्मचारी पर कोई कार्रवाई तक नहीं हुई.
सौंपागयाथा.निगम के सूत्रों की मानें तो पीएचइडी विभाग ने अगर रुपये दे दिये होते तो कम से कम एक वार्ड में विकास की गंगा बह जाती. इन रुपयों से रोड व नाली से जुड़े कई काम पूरे हो जाते, लेकिन नगर निगम हर बार पीएचइडी को सिर्फ पत्र भेज कर खानापूर्ति करता रहा. गौरतलब है कि एनडीए की सरकार के समय विभिन्न योजनाओं के लिए नगर निगम ने पीएचइडी विभाग को मोटी रकम दी थी. इन योजनाओं को पूरा करने के लिए कई कंपनियों को टेंडर दिये गये थे. इन्हीं में से एक कंपनी किर्लोस्कर थी. इस कंपनी को पेयजल परियोजना को पूरा करने का दायित्व दिया गया था लेकिन यह परियोजना लोगों के लिए अभिशाप बन गयी है. इसके साथ ही शहर के 40 वार्डों में नाला निर्माण के लिए 3.20 करोड़ रुपये पीएचइडी को दिया गया था. पीएचइडी ने कोलकाता की कंपनी जेनेसिस फिंटेक लिमिटेड को नाला निर्माण के लिए डीपीआर तैयार करने की जिम्मेवारी सौंपी थी. डीपीआर तैयार करने में पीएचइडी ने 28.20 लाख रुपये खर्च कर दिये, लेकिन अब तक नाला निर्माण नहीं कराया जा सका.
विभागीय सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन पीएचइडी मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने नगर निगम से विकास योजनाओं के लिए पीएचइडी विभाग को रुपये दिलाये थे. कई योजनाएं आज तक पूरी नहीं की जा सकीं. पेयजल का काम पीएचइडी ने किर्लोस्कर को दिया था. काम खराब करने के कारण किर्लोस्कर को काली सूची में डाल दी गयी है.
बैंक में किसी के निजी पैसे होते, तो क्या होता लाभ
पीएचइडी के पास नगर निगम के तीन करोड़ 20 लाख रुपये 10 साल से रखे हुए हैं. ये रुपये अगर किसी ने निजी रकम के तौर पर बैंक में रखा होता, तो एक करोड़ से अधिक का ब्याज मिलता. ये रुपये अगर फिक्स्ड डिपोजिट में होते तो अब तक दोगुना से अधिक रुपये मिलते. बैंक के हिसाब से निम्न प्रकार से मिलता ब्याज :
3.20 करोड़ रुपये के साधारण खाते में एक साल में मिलने वाला ब्याज : – 12.80 लाख रुपये
10 साल में मिलने वाला ब्याज : – 1.28 करोड़ रुपये
उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा करने का आदेश
नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद ने आदेश जारी कर वर्ष 2013-14 तक के सहायक अनुदान मद में उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा करने को कहा है. श्री प्रसाद ने साफ कहा है कि पहले के पीएल खाते व बैंक खाते में रखे गये रुपये कोषागार में जमा किये जाएं. इसके बाद यह तय हो गया कि पीएचइडी को उपयोगिता प्रमाण पत्र देते हुए नाले के रुपये भी वापस करने होंगे.
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