इस सोच के साथ 42 साल पहले शहीद नायक एसके विद्यार्थी के पिता मथुरा यादव ने अपनी दो कट्ठे जमीन स्कूल बनाने के लिए दान की थी. अब वह स्कूल जर्जर हो चुका है. पढ़ने वाले बच्चों की संख्या भी बढ़ गयी है. मुश्किल दिखी तो एक बार फिर से इस गांव के ही शिवनंदन यादव ने स्कूल के लिए पांच कट्ठा जमीन दान दे दिया. स्कूल तैयार हो रहा है. इस बार बड़ा कैंपस होगा. 900 घरों के इस गांव के बच्चे अब यहीं पढ़ेंगे.
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पहले मथुरा, अब शिवनंदन ने स्कूल के लिए दी जमीन
गया : शहीद नायक एसके विद्यार्थी की जन्मस्थली परैया के बोकनारी गांव में कुछ और भी प्रेरक कहानियां छिपी हैं. इसे केवल कहानी नहीं कह सकते, यह इस गांव के लोगों द्वारा पेश की गयी मिसाल है. गांव के बुजुर्ग चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ें. मेधावी हों, तो शहर जायें नहीं तो गांव में […]
गया : शहीद नायक एसके विद्यार्थी की जन्मस्थली परैया के बोकनारी गांव में कुछ और भी प्रेरक कहानियां छिपी हैं. इसे केवल कहानी नहीं कह सकते, यह इस गांव के लोगों द्वारा पेश की गयी मिसाल है. गांव के बुजुर्ग चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ें. मेधावी हों, तो शहर जायें नहीं तो गांव में ही कम से कम इतना तो जरूर पढ़ लें कि जीवन में कुछ कर सकें.
42 साल पहले मथुरा यादव ने दी थी जमीन : इस गांव में अभी जहां स्कूल चल रहा है. वह जमीन 42 साल पहले 1974 में शहीद नायक एसके विद्यार्थी के पिता मथुरा यादव ने दी थी. शहीद के पिता कहते हैं कि उस जमाने में गांव में पीपल के पेड़ के नीचे बच्चे पढ़ा करते थे. कड़ी धूप, बारिश में बहुत दिक्कत होती थी. मथुरा यादव ने अपनी दो कट्ठे की जमीन पर स्कूल बनाने की इच्छा अधिकारियों से मुलाकात कर जाहिर की. श्री यादव कहते हैं कि 1977 के आसपास स्कूल तैयार हो गया था. शहीद नायक एसके विद्यार्थी भी इस स्कूल में पढ़ते थे. इन 42 सालोंं में स्कूल का भवन जर्जर हो चुका है. कमजोर छत की वजह से भी दिक्कत हो रही है. स्कूल में लगभग 400 बच्चे पढ़ते हैं. कक्षा आठ तक बच्चों को पढ़ाने के लिए कुल 5 शिक्षक हैं. शिवनंदन यादव की जमीन पर भवन का निर्माण पूरा हो जाने के बाद, बच्चे वहीं पढ़ने जायेंगे.
दंपती को बच्चे नहीं, पर गांव के बच्चों की चिंता
शिवनंदन यादव बोकनारी गांव में अपनी पत्नी सरिता देवी के साथ रहते हैं. यह दंपती नि:संतान है. खेती-मजदूरी कर दोनों जीवन यापन कर रहे हैं. बच्चे का नहीं होना दुखी तो करता ही है. इन सब के बीच तीन साल पहले शिवनंदन ने अपनी खेती की पांच कट्ठे जमीन स्कूल बनाने के लिए दान देने का निर्णय कर लिया. दरअसल गांव में पहले से बना स्कूल काफी छोटा है. बच्चों की संख्या बढ़ जाने की वजह से यहां परेशानी होती है. भवन भी पुराना हो चुका है. स्कूल के ही एक शिक्षक ने इन सब बातों की चर्चा शिवनंदन से की. शिवनंदन को भी लगा कि गांव उनका है, यहां के बच्चे उनके हैं. अच्छी तरह पढ़ाई करेंगे, तो भविष्य में गांव का ही नाम होगा. अपनी पत्नी के साथ चर्चा की. फैसला कर लिया कि स्कूल के लिए जमीन दे देंगे. स्कूल का निर्माण शुरू हो गया है. उस जगह पर खड़े शिवनंदन कहते हैं कि जल्दी से बन जाये, तो सुखद अनुभव हो. बच्चे यहां पढ़ सकेंगे. कहते हैं कि उनके पास रोजगार नहीं है, ऐसे में साहब लोग (शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारी) से आग्रह किया है कि इसी स्कूल में उन्हें पिऊन की नौकरी में रख लें.
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