गया. पितृपक्ष मेला महासंगम में जैसे संपूर्ण भारत उतर आया हाे, पूरब से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण के प्रांताें के विभिन्न वेश-भूषा व भाषा-भाषी के लाेग यहां पधारे हैं. लेकिन, यहां आकर सब एक जैसे ही. एक ही रंग में रंगे अपने पूर्वजाें का विधि-विधान पूर्वक पिंडदान व तर्पण के कार्य में तल्लीन हैं. बाढ़, सुखाड़, प्राकृतिक आपदाआें के बावजूद अपने पूर्वजाें के प्रति आस्था घटती नहीं दिख रही. इस बार पिछले साल की तुलना में भीड़ कुछ ज्यादा ही देखने काे मिल ही है, जबकि पहले से एेसा अनुमान नहीं था. आशा के विपरीत तीर्थयात्री गयाधाम पहुंचे हैं. संख्या अब तक दाे लाख से ज्यादा हाे चुकी है.
इस बीच विष्णुपद मंदिर कैंपस में पिंडदान के बाद इधर-उधर बिखरे जौ के आटे की मात्रा से फिसलन बढ़ गयी है. इससे यात्रियाें के गिरने का खतरा बढ़ गया है. साेलहवीं वेदी में यह खतरा आैर भी ज्यादा है, चूंकि नीचे पिंड की पहाड़ी ऊंची-नीची है. वेदी के आसपास जाै के आटे से बना पिंड गिरने से फिसलन बढ़ गयी है. इसकी साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था का अभाव दिख रहा है. उधर जाे लाेग एक दिवसीय, तीन दिवसीय श्राद्ध कार्य के लिए गयाजी पधारे हैं आैर अक्षयवट जाने में असमर्थ हैं, उनके लिए पंडाजी विष्णुपद मंदिर में ही मिनी अक्षयवट में परिक्रमा करा उन्हें सुफल दे रहे हैं. इनमें भी अधिकतर बाल पंडे ही दिखाई दे रहे हैं. भले ही कर्मकांड का ज्ञान हाे न हाे, पर आशीष देेने में पीछे नहीं हैं.