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बीटीबिगहा में ब्लैकबोर्ड पर पढ़ाते हैं मास्टर साहेब, छप्पर पर होती हैं बच्चों की निगाहें
शेरघाटी: बीटीबिगहा मिडिल स्कूल के बारे में अगर कहा जाये कि बच्चे जान खतरे में डाल कर पढ़ाई-लिखाई करते हैं, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी. यों कहें कि बच्चों व शिक्षकों की नजर ब्लैकबोर्ड या किताबों की जगह छप्पर की ओर ही होती है. मानों, शिक्षक महोदय ऊपर ही पढ़ा रहे हों. स्कूल के सारे […]
शेरघाटी: बीटीबिगहा मिडिल स्कूल के बारे में अगर कहा जाये कि बच्चे जान खतरे में डाल कर पढ़ाई-लिखाई करते हैं, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी. यों कहें कि बच्चों व शिक्षकों की नजर ब्लैकबोर्ड या किताबों की जगह छप्पर की ओर ही होती है. मानों, शिक्षक महोदय ऊपर ही पढ़ा रहे हों.
स्कूल के सारे कमरे जर्जर हैं. पांच कमरों में तो छप्पर भी गिर चुके हैं. बच्चों के भविष्य व कोई अन्य विकल्प नहीं होने कारण मां-बाप खतरा भांपते हुए भी अपने बच्चों को स्कूल में भेजते हैं. ऐसा नहीं है कि छत व छप्पर गिरने का डर सिर्फ बच्चों में रहता है, शिक्षक भी डरे-सहमे रहते हैं.
गौरवशाली अतीत है बीटी बिगहा स्कूल का : शेरघाटी शहर से चार किलोमीटर दूर बीटीबिगहा मिडिल स्कूल की स्थापना 1961 में हुई थी. करीब 55 साल पहले स्थापित स्कूल का इतिहास स्वर्णिम है. प्रारंभिक दौर में यहां से पढ़ाई कर निकले छात्र–छात्राएं देश के विभिन्न राज्यों में नौकरी कर रहे हैं. स्कूल की कीर्ति ऐसी रही है कि यहां 10-10 किलोमीटर तक की दूरी तय कर एक दर्जन से ज्यादा गांव के बच्चे पढ़ने आते थे.
इमारत कभी भी हो सकती है धराशायी : वर्तमान में स्कूल का भवन जर्जर है. शिक्षक व बच्चे, दोनों कमरे में जाने से डरते हैं. बारिश होने पर छत से पानी टपकने लगता है.
उल्लेखनीय है कि बीटीबिगहा मिडिल स्कूल में करीब नौ सौ नामांकित बच्चे हैं, जबकि शिक्षकों की संख्या मात्र आठ है. स्कूल में शिक्षकों की भी कमी है.
बेहतर करने की कोशिश
हेडमास्टर दिग्विजय कुमार ने बताया कि जर्जर भवन को लेकर वरीय अधिकारियों को सूचना दी गयी है. उन्होंने कहा कि कम संसाधनों में भी बच्चों को बेहतरीन शिक्षा देने की भरपूर कोशिश की जा रही है.
कमरे बने हैं, पर छत खपरैल है
बीइओ सुनील कुमार ने बताया कि बीटीबिगहा मिडिल स्कूल के एक हिस्से में कमरे बनाये गये हैं, वे अभी खपरैल हैं, उसे पूरा करने के लिए विभाग को पत्र लिखा गया है.
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