अगर यह सब कुछ है, तो आशा नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को यह सूचना देंगी, ताकि बच्चे का सरकारी स्तर पर इलाज हो सके. यह सब कुछ जापानी इनसेफ्लाइटिसि (जेइ) व एक्यूट इनसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) के खतरे से बच्चों को बचाने के लिए हो रहा है. जिले के सभी प्रखंडों में आशा के अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, सोशल मोबलाइजेशन यूनिट व अन्य कई संस्थाआें के सदस्यों की टीम घूम रही है. सभी को जेइ व एइएस से बचाव व उससे प्रभावित मरीजों को ढूंढ़ने की जिम्मेवारी है.
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अलर्ट. सुनिए…! आपके घर बच्चा बीमार तो नहीं
गया: जिले के सभी गांवों में बीमार बच्चे ढूंढे जा रहे हैं. आशा को यह जिम्मेवारी मिली है. हर रोज एक एक गांव में जाना है, पता करना है कि कहीं कोई बच्चा बीमार तो नहीं है. अगर है, तो उसका इलाज कहां हो रहा है. कहीं अभिभावक ओझा-गुनी या झोलाछाप डाॅक्टर के चक्कर में […]
गया: जिले के सभी गांवों में बीमार बच्चे ढूंढे जा रहे हैं. आशा को यह जिम्मेवारी मिली है. हर रोज एक एक गांव में जाना है, पता करना है कि कहीं कोई बच्चा बीमार तो नहीं है. अगर है, तो उसका इलाज कहां हो रहा है. कहीं अभिभावक ओझा-गुनी या झोलाछाप डाॅक्टर के चक्कर में तो नहीं हैं.
मरीज को मगध मेडिकल अस्पताल तक पहुंचाना पीएचसी की जिम्मेवारी
किसी भी गांव में अगर कोई बच्चा बीमार है और आशंका है कि वह जेइ व एइएस से पीड़ित हो सकता है, तो यह वहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की जिम्मेवारी है कि बच्चे का प्राथमिक उपचार कर उसे एंबुलेंस से मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेजे. जिला स्तर पर वरीय स्वास्थ्य पदाधिकारियों ने स्पष्ट निर्देश जारी किया है कि सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी एंबुलेंस का इंतजाम रखेंगे. अगर, किसी स्थिति में सरकारी एंबुलेंस में खराबी आ जाती है, तो पीएचसी प्रभारी प्राइवेट स्तर पर एंबुलेंस का इंतजाम रखेंगे. किसी भी हाल में समय रहते बच्चे को मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचाना होगा. इसके अलावा सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तीन बेड का एइएस वार्ड तैयार कराया गया है. यहां प्रभावित बच्चों का प्राथमिक उपचार होगा. हर रोज में पीएचसी में आशा, विश्व स्वास्थ्य संगठन व यूनिसेफ के साथ बैठक होगी. इसमें दिन भर की रिपोर्ट तैयार की जायेगी.
पिछड़ा व स्लम इलाकों पर ज्यादा फोकस: स्वास्थ्य विभाग का सबसे अधिक फोकस गांव के पिछड़ा व स्लम इलाकों पर है. जानकारी का अभाव और खराब लाइफस्टाइल की वजह से इन जगहों पर जेइ व एइएस का खतरा अधिक होता है. बीते कुछ वर्षों में जितने भी मामले आये हैं, उनमें अधिकतर ऐसे इलाकों से ही रहे. ऐसे में हेल्थ वर्कर उन जगहों पर जाकर वहां की साफ-सफाई और लोगों को जागरूक करेंगे.
राज्यस्तर की टीम ने किया कई गांवों का दौरा: इधर, राज्यस्तरीय विभिन्न टीमों ने भी जिले के कई गांंवों का दौरा किया. जानकारी के मुताबिक, टीम के वरीय सदस्यों ने वजीरगंज व खिजरसराय में गांवों का दौरा किया. वहां लोगों के रहन-सहन व आसपास के परिवेश को देखा. साथ ही, यहां के लोगों को जेइ व एइएस से बचाव से जुड़ी कई जानकारियां दीं.
प्राइवेट चिकित्सकों से भी अपील, करें रेफर
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डाॅ सुरेंद्र चौधरी ने बताया कि गांव में प्राइवेट चिकित्सकों को भी कहा गया है कि अगर किसी बच्चे में जेइ या एइएस से संबंधित कोई लक्षण पाये जाते हैं, तो उसका इलाज करने की कोशिश न करें, यह रिस्क हो सकता है. डाॅ चौधरी ने कहा कि प्राइवेट डाॅक्टरों से कहा गया है कि ऐसे मरीज को तुरंत रेफर करें, ताकि सरकारी स्तर पर विशेषज्ञों की देखरेख में उसका इलाज हो सके. आशा व गांव में काम रही हेल्थ टीम को इस पर नजर रखने को कहा गया है. सरकारी अस्पतालों व चिकित्सकों को अलर्ट रहने को कहा गया है.
गया पहुंचे केंद्रीय टीम के दो सदस्य
रविवार को केंद्रीय टीम के दो सदस्य गया पहुंचे. केंद्र सरकार स्वास्थ्य विभाग के बिहार-झारखंड के क्षेत्रीय निदेशक डाॅ कैलाश व संयुक्त निदेशक डाॅ राम सिंह ने सिविल सर्जन से मुलाकात की. इसके बाद मगध मेडिकल काॅलेज अस्पताल पहुंच कर इलाज के लिए भरती बच्चों से मिले. अस्पताल अधीक्षक डाॅ सुधीर कुमार सिन्हा ने बताया कि सोमवार को केंद्र सरकार की एक स्पेशल टीम गया आ रही है. यह टीम अपने स्तर पर सर्वे करेगी.
बीते तीन दिनों में एक भी मरीज नहीं
राहत की बात यह है कि बीते तीन दिनों में एक भी मरीज मगध मेडिकल अस्पताल में भरती नहीं हुआ है. फिलहाल, यहां पहले से दो बच्चों का इलाज चल रहा है. इनमें सुहाना कुमारी की स्थिति बेहतर होने की सूचना है. गौरतलब है कि 24 जून से 30 जून के बीच में 12 बच्चे गंभीर स्थिति में भरती हुए थे. इनमें आठ बच्चों की मौत हो गयी, जबकि दो बच्चों को उनके अभिभावक इलाज के दौरान ही लेकर चले गये. मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल के शिशुरोग विभाग के अध्यक्ष डाॅ वीवी सिंह ने बताया कि राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों की टीम लगातार कैंप कर रही है. कुछ दिन पहले एक्सपर्ट ने यहां इलाज के लिए भरती सात बच्चों का सैंपल लिया था. टेस्ट के बाद तीन बच्चों के सैंपल की रिपोर्ट आयी है. इनमें हरपिस वायरस का जिक्र है. हालांकि, विशेषज्ञ अभी कुछ और जांच कर रहे हैं, इसके बाद ही निष्कर्ष निकलेगा.
अपने क्षेत्र में चौकस रहें आशा
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बोधगया में रविवार को आशा व एएनएम की विशेष बैठक बुलायी गयी. एसीएमओ डाॅ कौशल कुमार मिश्र ने जेइ व एइएस के लक्षण की जानकारी देते हुए कहा कि आशा अपने कार्य क्षेत्र में सतर्क रहें. गांव-टोले में लोगों से मिलें और इस बीमारी से कोई पीड़ित है या नहीं, यह पता लगायें. उन्होंने कहा कि महादलित इलाकों में रहनेवाले लोगों को जागरूक करें व इस बीमारी की पूरी जानकारी दें. एसीएमओ ने आशा से कहा कि कहीं से भी जेइ व एइएस के मरीज का पता चलता है, तो पीएचसी को तुरंत सूचना दें.
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