गया: जापानी इनसेफ्लाइटिस (जेइ) व एक्यूट इनसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) पर अंकुश लगाने के लिए एक ओर लगातार मंथन किया जा रहा है, तो दूसरी ओर इससे निबटने के लिए कोई कारगर पहल नहीं की जा रही है.
सरकार व स्वास्थ्य विभाग ने गांव स्तर पर एइएस का इलाज करने की योजना बना रखी है, लेकिन हकीकत है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) भी इसके लिए सक्षम नहीं है. यहां तक कि अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में भी दवाएं पर्याप्त नहीं हैं. यहां एइएस के मरीजों का आना शुरू हो गया है. पिछले एक माह में तीन बच्चों की मौत की भी सूचना है, लेकिन अधिकृत पुष्टि नहीं की जा रही है. शिशु रोग विभाग में सोमवार को मेनिंगो इंसेफ्लाइटिस के एक मरीज को भरती किया गया. इसे भी काफी गोपनीय रखा जा रहा है. नाम सार्वजनिक करने से परहेज किया जा रहा है. इस विभाग के एक डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि विभागीय दबाव के कारण ऐसा किया जा रहा है. अब तक तीन बच्चों की मौत हो चुकी है, लेकिन कहीं भी रिपोर्ट नहीं भेजी जा रही है.
चिकित्सकों के कई पद रिक्त
जानकारी मिली है कि शिशु रोग विभाग में एंटी डायरियल ड्रग, बुखार कम करने के लिए पारासीटामोल सीरप, ओआरएस व कई महत्वपूर्ण एंटीबायटिक दवाएं नहीं हैं. इस विभाग में प्राध्यापक का एक, सह प्राध्यापक के दो, सहायक प्राध्यापक के दो,रेजिडेंट के तीन व मेडिकल ऑफिसर के एक पद स्वीकृत हैं. इनमें सह प्राध्यानक शंभु शंकर सिंह लंबे समय से अवकाश पर हैं.
वह विभाग में वीआरएस के लिए आवेदन दे रखा है. रेजिडेंट के तीन पद व मेडिकल ऑफिसर का एक पद लंबे समय से रिक्त है. पिछले एक साल से इस विभाग में प्रतिनियुक्त सिविल सजर्न कार्यालय औरंगाबाद के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ कृष्णा प्रसाद सिन्हा व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोह (औरंगाबाद) के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ विनय कुमार जैन को हटा कर अनुमंडलीय अस्पताल टिकारी में प्रतिनियुक्त किया गया है. इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार व स्वास्थ्य विभाग जेइ व एइएस के प्रति कितना गंभीर है.
फॉगिग में शिथिलता
पीएमआरडी (फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैब्लिटेशन सेंटर) व सेंटीनेल सेंटर गया में खोलने की घोषणा अब तक पूरी नहीं की जा सकी है. ट्रॉमा सेंटर बनाने की योजना केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृति मिलने व राशि मुहैया करा देने के बाद भी अब तक शुरू नहीं की जा सकी है. जेइ प्रभावित गांवों में मालाथियोन का फॉगिंग कराने में भी शिथिलता बरती जा रही है. अप्रैल में एक भी गांव में फॉगिंग नहीं कराया जा सका. मई में कुछ प्रखंडों के कुछ गांवों में फॉगिंग शुरू किये जाने की सूचना है, लेकिन अधिकृत पुष्टि नहीं की जा रही है.
नहीं शुरू हुई ट्रेनिंग
जिले के 24 में से 15 प्रखंडों के 33 गांवों में फॉगिंग कराया जाना है. प्रखंड स्तर पर एएनएम, आशा व आंगनबाड़ी सेविकाओं को ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल का ट्रेनिंग देने का काम भी शुरू नहीं किया जा सका है.
इससे स्पष्ट पता चलता है कि अब तक सारी योजनाएं कागजों पर ही दौड़ रही है. जब जेइ व एइएस महामारी का रूप लेगा, तभी विभाग का नींद खुलेगा. 2007 से अब तक इस बीमारी की चपेट में करीब एक हजार बच्चे पड़ चुके हैं, जिनमें 238 की मौत हो चुकी है. यह बीमारी इस साल भी कहर बन कर आती है तो आश्चर्य नहीं होगी.