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सहनशीलता से मानव बन सकता है महामानव

गया: मनुष्य सहनशीलता का गुण उपजा कर मानव से महामानव बन सकता है. सहनशीलता में रचनात्मक गुणों का समावेश होता है. ऐसे मानव आध्यात्मिक अवधारणा के प्रति भी सजग होते हैं. ये बातें रविवार को धर्मसभा भवन में आयोजित तीन दिवसीय आध्यात्मिक कार्यक्रम में प्रवचन के दौरान मानव कल्याण आश्रम की मां जसजीत जी ने […]

गया: मनुष्य सहनशीलता का गुण उपजा कर मानव से महामानव बन सकता है. सहनशीलता में रचनात्मक गुणों का समावेश होता है. ऐसे मानव आध्यात्मिक अवधारणा के प्रति भी सजग होते हैं. ये बातें रविवार को धर्मसभा भवन में आयोजित तीन दिवसीय आध्यात्मिक कार्यक्रम में प्रवचन के दौरान मानव कल्याण आश्रम की मां जसजीत जी ने कही. उन्होंने कहा कि मनुष्य में दो प्रकार के गुण होते हैं- अंत:मुखी व बाह्य मुखी. अंत:मुखी के अंदर चिंतन जारी रहता है.
उनसे कड़वे वचन की संभावना नहीं होती है, जबकि बाह्य मुखी मनुष्य अधिक बोलने के कारण गलतियां कर बैठता है. मां जसजीत जी ने महान दार्शनिक सुकरात व उनकी पत्नी के व्यक्तित्व की चर्चा की. उन्होंने कहा कि सुकरात सहनशील थे, जबकि उनकी पत्नी असहनशील. सुकरात एक दिन अपने छात्रों के साथ घर पहुंचे. छात्रों के साथ सुकरात को देख उनकी पत्नी भड़क उठीं और सुकरात पर कीचड़ फेंक दिया. सहनशील सुकरात के छात्र ने कहा कि पत्नी आपके योग्य नहीं है.

सुकरात ने विनम्र भाव से कहा कि जो गरजते हैं, बरसते नहीं हैं. सुकरात ने सहज ढंग से पत्नी को जवाब दिया और कहा कि क्रोध को सहनशीलता से शांत किया जा सकता है. सुकरात के इस जवाब से पत्नी विनम्र हो गयी. उन्होंने कहा कि सहनशीलता ऐसा गुण है, जिसे अपनाकर कोई भी महामानव बन सकता है. आध्यात्मिक अवधारणाओं को अपना सकता है.

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