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संस्कार के साथ दे रहे पुरस्कार भी

– कलेंद्र प्रताप – बोधगया : देश-दुनिया में मशहूर मगध विश्वविद्यालय है तो पास ही, पर बोधगया में भी अशिक्षा का अंधेरा कम नहीं है. यहां भी ऐसे बच्चों की कमी नहीं, जो स्कूल नहीं जाते. ऐसे बच्चों की संख्या भी कम नहीं है, जो स्कूल जाते तो हैं, पर पढ़ाई-लिखाई के असर से कोसों […]

– कलेंद्र प्रताप –

बोधगया : देश-दुनिया में मशहूर मगध विश्वविद्यालय है तो पास ही, पर बोधगया में भी अशिक्षा का अंधेरा कम नहीं है. यहां भी ऐसे बच्चों की कमी नहीं, जो स्कूल नहीं जाते. ऐसे बच्चों की संख्या भी कम नहीं है, जो स्कूल जाते तो हैं, पर पढ़ाई-लिखाई के असर से कोसों दूर हैं.

यहां की जमीनी हकीकत व जरूरत को ध्यान में रख कर एक श्रीलंकाई भंते (बौद्ध गुरु) ने एक संडे स्कूल खोल कर बच्चों को बेपटरी होने से रोकने की गंभीर कोशिश शुरू की है. इस कोशिश का असर देख वह संडे स्कूल से संस्कार की सीख ले रहे बच्चों को पुरस्कार भी दे रहे हैं.

उन्होंने रविवार को यहां के 50 अनुशासित व संस्कार संपन्न बच्चों को पढ़ाई-लिखाई में सहूलियत के लिए साइकिलें मुहैया करायीं. दरअसल, देश-दुनिया के दूसरे हिस्सों की तरह ही बेलगाम हो रहे बच्चों के रहन-सहन, चाल-चलन को लेकर समाज के गंभीर लोगों की चिंता यहां भी कम नहीं है.

पर, ऐसे चिंतित लोगों में से अधिकतर की दिक्कत यह है कि वे कुछ करना जरूरी नहीं मानते. सिर्फ चिंतित रह कर अपनी जिम्मेवारियां पूरी समझ लेते हैं. लेकिन, बोधगया की धरती पर श्रीलंकाई भंते ज्ञानानंद ने बदलाव की दिशा में ठोस पहल की है. उन्हें अपने प्रयासों के नतीजे भी दिखने लगे हैं, जिनसे वे संतुष्ट भी हैं.

बोधगया के पास रत्तीबिगहा गांव में ज्ञानानंद ने करीब पांच वर्ष पूर्व जिस बुद्ध ज्ञान आश्रम की स्थापना की थी, वहां आसपास के बच्चों को सद्गुण की शिक्षा देने के लिए संडे स्कूल खोला है. उनके संडे स्कूल से शिक्षा व संस्कार पा रहे बच्चों को अब वह पुरस्कार देकर इन जैसे दूसरे बच्चों को प्रोत्साहित करने, प्रेरित करने का भी काम कर रहे हैं. इसके लिए वह दान में मिले धन का उपयोग कर रहे हैं.

रविवार को संडे स्कूल के जिन बच्चों को भंते ज्ञानानंद ने पुरस्कार के तौर पर साइकिलें दीं, उन्हें कल तक पता भी नहीं था कि उन्हें कोई पुरस्कार मिलनेवाला है. साइकिल लेने के लिए अचानक नाम पुकारे जाने पर अधिकतर बच्चों को सुखद आश्चर्य हुआ.

चौंक गये. इस कार्यक्रम के साथ एक खास बात यह भी रही कि यहां कई सौ बच्चों के बीच 50 बच्चों को ही साइकिलें मिलीं, पर कहीं से कोई विरोध नहीं, कोई शिकायत नहीं. सरकारी स्कूलों में बंटनेवाली साइकिलों (राशि) के लिए वंचित बच्चे जिस तरह सड़क जाम कर रहे हैं, स्कूलों में ताले जड़ रहे हैं, हेडमास्टर का घेराव कर रहे हैं, बुद्ध ज्ञान आश्रम में वैसा कुछ भी नहीं हुआ.

बोधगया में भंते ज्ञानानंद के प्रतिनिधि भंते कुशल चित्त इसे भी उनके संडे स्कूल द्वारा बच्चों को दी जा रही संस्कार की शिक्षा का ही असर मानते हैं. उल्लेखनीय है कि भंते कुशल चित्त प्रत्येक रविवार को संडे स्कूल में करीब 1000 से अधिक बच्चों को शिक्षा व संस्कृति के पाठ पढ़ाते हैं. बकरौर के पूर्व उप मुखिया राजेश कुमार मानते हैं कि संडे स्कूल ने उनके पास-पड़ोस के बच्चों के आचार-आचरण पर जादुई असर छोड़ा है.

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