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आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की साहत्यि साधना

आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की साहित्य साधना(पुण्यतिथि आज)गया जिले के डुमरिया प्रखंड के (माया ग्राम) मैगरा गांव में जन्मे छायावाद के बाद के काल के सुविख्यात कवि जानकीवल्लभ शास्त्री अद्भुत प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के स्वामी थे. आज उनकी पांचवीं पुण्यतिथि है. उनका बचपन संघर्षाें से भरा व दुखपूर्ण रहा. तथापि उन्हाेंने साहस व धैर्य काे संजाेये रखा […]

आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की साहित्य साधना(पुण्यतिथि आज)गया जिले के डुमरिया प्रखंड के (माया ग्राम) मैगरा गांव में जन्मे छायावाद के बाद के काल के सुविख्यात कवि जानकीवल्लभ शास्त्री अद्भुत प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के स्वामी थे. आज उनकी पांचवीं पुण्यतिथि है. उनका बचपन संघर्षाें से भरा व दुखपूर्ण रहा. तथापि उन्हाेंने साहस व धैर्य काे संजाेये रखा व अंतत: महानता काे प्राप्त किया. प्रतिभा के धनी जानकीवल्लभ शास्त्री मूलत: संस्कृत भाषा के मनीषी थे. बाद में निराला जी के अनुराेध पर हिंदी में आये. फिर क्या था, देखते-देखते उन्हाेंने हिंदी साहित्य में अनगिनत रचनायें कर डाली. 1950 तक चार गीत काव्य प्रकाशित हुए, जिनमें शिप्रा, संगम, मेघदूत व अवंतिका मूल हैं. साहित्यिक रचनाआें में सृजनरत शास्त्री जी छायावाद के अंतिम स्तंभ माने जाते हैं. उन्हाेंने साहित्य की हर विद्या के सृजन में लेखनी चलायी, पर विशिष्ट प्रसिद्धि काव्य जगत में ही मिली. उनकी रचना ‘हंस-बलाका’ हिंदी गद्य की अमूल्य निधि है. विविध विधाआें में इनकी रचनायें इस प्रकार हैं-बाल लता, अंकुर, उन्मेष, रूप-अरूप, तीर तरंग, मेघगीत, शिप्रा, अवंतिका, गाथा, उत्पल दल, चंदन वन, गीत वितान, धूपतरी, शिशिर किरण, हंस किरण, सुरसरि आदि. सुकवि शास्त्री जी का काव्य संसार बहुत ही विविध व व्यापक है. इनके गीताें में सहजता का साैंदर्य उल्लेखनीय है. जीवन-जगत की तमाम उलझनाें काे पार करते हुए मनुष्य की आत्मा अंतत: परमात्मा की खाेज में भटकती हैं. उन्हाेंने सरल बिंब के माध्यम से इस सनातन का भाव कुछ यूं चित्रित किया है-बना घाेंसला पिंजड़ा पंछी, अब अनंत से काैन मिलाये, जिसके खुद बिछड़ा पंछी.कालिदास, तुलसीदास, शेक्सपीयर, मिल्टन, रवींद्रनाथ टाकुर, जयशंकर प्रसाद व सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ उनके प्रिय कवि रहे हैं. माधुर्य उनकी कविता का विशिष्ट गुण है. श्रृंगार उनका प्रिय रस है. सत्यम शिवम सुंदरम इनके काव्य का प्रयाेजन है. ये लाेक व परलाेक दाेनाें के कवि हैं. गद्य विद्या में उनकी रचनायें अद्भुत हैं. कानन, अपर्णा, लीला-कमल आदि कहानी संग्रह, एक किरण साै झाइयां, दाे तिनकाें का घाेंसला, अश्व बुद्ध, कालिदास व राधा इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं. ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व ने अपने शरीर का परित्याग सात अप्रैल 2011 काे अपने ही निवास ‘निराला-निकेतन’ में किया, जिससे केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में शाेक की लहर दाैड़ पड़ी थी. वह अपनी कविता काे क्षण-क्षण जीने के लिए अलग से सदियाें तक याद किये जायेंगे. डॉ राम सिंहासन सिंह, प्राचार्य राम लखन सिंह यादव कॉलेज\\\\\\\\B

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