फोर्स में समन्वय की कमी से नक्सलियों की चांदी कई वर्षों से लगातार ऑपरेशन चलाये जाने के बावजूद गया जिले से नहीं उखड़ रहे नक्सली संगठनों के पैरनक्सलियों के लेवी व रंगदारी मांगे जाने के कारण जिले में दर्जनों योजनाओं का कामकाज है बंदरोशन कुमार, गयागया जिले में भाकपा-माओवादी, पीएलएफआइ, आरसीसी व टीपीसी नामक नक्सली संगठनों पर अंकुश लगाने के लिए कई वर्षों से पारा मिलिटरी फोर्स (सीआरपीएफ, कोबरा, एसटीएफ व एसएसबी) द्वारा लगातार ऑपरेशन चलाया जा रहा है. इसमें जिला पुलिस व सैप के जवानों को भी लगाया गया है. लेकिन, फोर्स में आपसी समन्वय की कमी के कारण अब तक गया जिले से नक्सलियों के पैर उखाड़ने में सरकार को सफलता नहीं मिल पायी है. लेवी व रंगदारी की मांग को लेकर अब भी जिले में दर्जनों योजनाओं का कामकाज बंद है. पारा मिलिटरी फोर्स, पुलिस, प्रशासन व ठेकेदारों के बीच आपसी सहमति नहीं होने के कारण लेवी व रंगदारी वसूलने में नक्सली संगठनों की चांदी कट रही है. इन सब के बीच योजनाओं से जुड़े अफसर, ठेकेदार व राजनीति में ऊंचा कद रखनेवाले जनप्रतिनिधियों की भी बल्ले-बल्ले है. हर माह खर्च हो रहे अरबों रुपये नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए गृह मंत्रालय ने बाराचट्टी के बरवाडीह में कोबरा का बटालियन के मुख्यालय की स्थापना की. कैंप में कोबरा के अधिकारियों व जवानों की संख्या करीब 1100 है. गृह मंत्रालय के निर्देश पर ही गया में सीआरपीएफ की सात कंपनियां (करीब 910 जवान) व एसएसबी की चार कंपनियां (करीब 520 जवान) के अलावा राज्य सरकार के निर्देश पर एसटीएफ की चार कंपनियां (करीब 520 जवान) व सैप के करीब 500 जवान भी तैनात किये गये गये हैं. पारा मिलिटरी फोर्स के अधिकारियों व जवानों पर केंद्र व राज्य सरकार हर माह अरबों रुपये खर्च कर रही हैं. इसके अतिरिक्त नक्सलियों से निबटने के लिए जिला पुलिस के पास एसआरइ के फंड में हर महीने करोड़ों रुपये आते हैं. लेकिन, आपसी समन्वय की कमी के कारण पारा मिलिटरी फोर्स नक्सलियों पर लगाम लगाने में सक्षम साबित नहीं हो रहे हैं. 2012 में डीजीपी ने उठाये थे सवाल वर्ष 2012 में सीआरपीएफ के तत्कालीन डीजी (महानिदेशक) के. विजय कुमार व डीजीपी (बिहार) अभयानंद ने भी गया शहर के आइटीआइ परिसर में स्थापित सीआरपीएफ कैंप में डीएम वंदना प्रेयसी व एसएसपी विनय कुमार सहित अन्य वरीय अधिकारियों की मौजूदगी में मीटिंग की थी. उस दौरान डीजीपी ने सवाल उठाया था कि नक्सली जंगल में रहते हैं. जंगली इलाके के आसपास ही नक्सली घटनाएं करते हैं. फिर उसने मुकाबला करनेवाले फोर्स गया शहर में क्यों रहते हैं. शहर में रहने का क्या औचित्य है. अगर छकरबंधा में नक्सलियों के मूवमेंट की जानकारी मिली, तो गया शहर से फोर्स को छकरबंधा पहुंचने में ही उनकी आधे से अधिक शक्ति क्षीण हो जायेगी. ऐसी स्थिति में फोर्स नक्सलियों से क्या मुकाबला कर पायेगा. डीजीपी के इस चिंता के बाद ही छकरबंधा, सेवरा व लुटुआ में पुलिस कैंप स्थापित किये गये थे. गया शहर से सीआरपीएफ जवानों की तैनाती छबरबंधा, सेवरा व लुटुआ कैंप में की गयी थी. लेकिन, अब फिर वहीं स्थिति बनती जा रही है. जंगलों के बजाय शहर में रहते हैं वरीय अधिकारी कोबरा का कैंप बाराचट्टी के बरवाडीह में है. वहां करोड़ों रुपयों से आवासीय संसाधन मुहैया कराये गये हैं. लेकिन, कोबरा के कमांडेंट का आवास गया शहर में है. वह हर रोज गया शहर से ही कैंप आते-जाते हैं. इससे हर माह हजारों रुपयों का डीजल की बरबाद हो रह है. गया शहर में ही सीआरपीएफ डीआइजी का कार्यालय है. ऐसी स्थिति में सीआरपीएफ कमांडेंट व डिप्टी कमांडेंट रैंक के अधिकारियों का गया शहर में रहने का कोई औचित्य ही नहीं बनता है. एसएसबी कमांडेंट का आवास भी गया शहर के पास धनावां गांव में है. एसटीएफ व सैप के प्रमुख भी गया शहर में ही रहते हैं. जब ऑपरेशन की रणनीति बनती है तो ये अधिकारी गया शहर से ही मूव करते हैं. अधिकारियों के मन में नक्सलियों का भय ! वर्ष 2013 में डोभी-चतरा रोड में रात के समय पैट्रोलिंग कर लौट रही डोभी थाने की पुलिस पर नक्सलियों ने हमला किया था. दो जवान शहीद व कई घायल हो गये थे. इस घटना के कुछ ही घंटे बाद तत्कालीन डीजीपी अभयानंद अपने एक बॉडीगार्ड के साथ घटनास्थल पर पहुंच कर एसएसपी को चौंकाया था. लेकिन, आज हालात है कि दिन के उजाले में भी नक्सलग्रस्त इलाके में जाने से पुलिस के वरीय अधिकारी कांपते हैं. पिछले सप्ताह पीएलएफआइ ने लगातार तीन घटनाओं को अंजाम देकर पुलिस महकमे में खलबली मचा दी. तब, इन मामलों की तहकीकात करने पटना से डोभी पहुंचे पुलिस के वरीय अधिकारियों की हिम्मत नहीं हुई कि वे अपने वाहनों से उतर कर नक्सलियों द्वारा जलायी गयी पोकलेन का जायजा व आसपास रहनेवाले लोगों से पूछताछ करें. वरीय अधिकारियों के मन में नक्सलियों का भय इस कदर छाया था कि उन्होंने वाहन से ही पोकलेन का जायजा लिया. जब ये अधिकारी जब डोभी के पिपरघट्टी स्थित पेट्रोलपंप पहुंचे, तो लोगों ने कि वे अपने सर्विस रिवॉल्वर साथ रखे हुए हैं. …क्यों नहीं हटा दिये जायें पारा मिलिटरी फोर्स रंगदारी की मांग के बाद दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या का मामला गरमाया, तब पहली बार पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर एसएसपी ने जिले के प्रमुख ठेकेदारों व उनके प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर उनकी समस्याएं जानीं. नक्सलियों से सबसे ज्यादा शेरघाटी अनुमंडल प्रभावित है. शेरघाटी अनुमंडल क्षेत्र में ही सीआरपीएफ, कोबरा व एसटीएफ सहित अन्य पारा मिलिटरी फोर्स कार्रवाई कर रहे हैं. लेकिन, इसके बावजूद अब भी सैकड़ों एेसी योजनाएं हैं, जो नक्सलियों की धमकी से बंद पड़ी हैं. अब सवाल यह है कि इन इलाकों में सीआरपीएफ, कोबरा व एसटीएफ के सैकड़ों जवानों सहित छकरबंधा, सेवरा, लुटुआ, मैगरा, नंदई, सुहैल, चोन्हा, कोठी, डुमरिया, इमामगंज, बांकेबाजार, सैफगंज व रोशनगंज पुलिस कैंप के बावजूद सैकड़ों योजनाएं के काम क्यों आधित हैं. क्या अब भी नक्सलियों का प्रभाव कम नहीं हो पा रहा है. अगर नक्सलियों की गतिविधियों को कम करने में इतने सारे अधिकारी व जवान सक्षम नहीं हो रहे हैं, तो क्यों नहीं पारा मिलिटरी फोर्स को इन जगहों से हटा दिया जाये. कम से कम सरकार को हर माह अरबों रुपये बचेंगे. कोबरा के रहते एनएच-टू सुरक्षित नहीं एनएच-टू से कई राज्यों की ट्रकें व अन्य वाहन गुजरते हैं. अगर एनएच पर कोई वारदात या नक्सली हादसा होता है, तो वह खबर तुरंत हर राज्य में फैल जाती है. इससे राष्ट्रीय स्तर पर गया जिले की छवि खराब होती है. कुछ माह पहले तत्कालीन एसएसपी मनु महाराज के कार्यकाल में नक्सलियों ने एनएच पर 32 ट्रकों में आग लगा कर दहशत फैला दिया था. अब पीएलएफआइ के जोनल कमांडर ने एनएच से कुछ दूरी पर स्थित दादपुर गांव में पोकलेन व डोभी के पिपरघट्टी स्थित पेट्रोल पंप में आग लगा देने के बाद पुलिस की सुरक्षा इंतजाम पर सवाल खड़ा कर दिया है. एनएच-टू के किनारे ही बाराचट्टी के बरवाडीह में कोबरा कैंप है. कैंप रहने के बावजूद नक्सली प्लानिंग के तहत एनएच पर घटनाओं को अंजाम देकर अपना वर्चस्व कायम करने में सफल हो रहे हैं.
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फोर्स में समन्वय की कमी से नक्सलियों की चांदी
फोर्स में समन्वय की कमी से नक्सलियों की चांदी कई वर्षों से लगातार ऑपरेशन चलाये जाने के बावजूद गया जिले से नहीं उखड़ रहे नक्सली संगठनों के पैरनक्सलियों के लेवी व रंगदारी मांगे जाने के कारण जिले में दर्जनों योजनाओं का कामकाज है बंदरोशन कुमार, गयागया जिले में भाकपा-माओवादी, पीएलएफआइ, आरसीसी व टीपीसी नामक नक्सली […]
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