गया: भारत के बेंगलुरु के बाद यूके के लुटन में स्थापित गया के उद्यमी कृष्ण कुमार सिंह की कुमार ऑर्गेनिक्स प्राइवेट लिमिटेड को इंगलैंड में बेहतर रिस्पांस मिल रहा है. खासकर, उम्दा प्रोडक्ट्स व बड़ी संख्या में रोजगार देने के लिए. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन गत 14 नवंबर को मुंबई में एक प्रेसवार्ता के दौरान इस कंपनी के प्रोडक्ट्स को बेहतर बता चुके हैं. लेकिन, गया जिले के खिजरसराय प्रखंड में शिलान्यास के बाद कुमार टेक बायो प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का मामला अधर में है.
यहां भूसी के जरिये बिजली का उत्पादन होना है. आये दिन ब्रेडा के अधिकारी निरीक्षण व अध्ययन कर रहे हैं, पर कंपनी को फाइनल टच देने से संबंधित फाइलें आगे नहीं बढ़ पा रही हैं. यह कहना है उद्यमी कृष्ण कुमार सिंह उर्फ कुमार बाबू का. इस बाबत ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है. मामला संज्ञान में लाया जायेगा, तो सरकार शीघ्र कार्रवाई करेगी.
कुमार बाबू ने कहा कि राज्य में आये दिन निवेश नीति से संबंधित खबरें सुर्खियों में रहती हैं. निवेश होने की बात भी बतायी जा रही है, लेकिन धरातल पर हकीकत नजर नहीं आ रही. इसका अंदाजा कुमार टेक बायो प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का अपडेट देख कर लगाया जा सकता है. खिजरसराय में पिछले साल 31 दिसंबर को 51 एकड़ जमीन पर कुमार टेक का शिलान्यास किया गया. जमीन, बाउंड्री व अन्य कार्यो में करोड़ों रुपये खर्च हुए. एक साल बीतने वाला है, लेकिन इसका काम आगे बढ़ाने के लिए ब्रेडा (बिहार रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी) ने अब तक हरी झंडी नहीं दी है. एजेंसी के पदाधिकारी आये दिन शिलान्यास स्थल का जायजा ले रहे हैं. तरह-तरह के सवाल कर रहे हैं, पर फाइल को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं दिखा रहे. उन्होंने कहा कि करोड़ों रुपये के इस प्रोजेक्ट का एस्टिमेट बढ़ता जा रहा है. अब तक कई लाख रुपये का नुकसान भी हो चुका है. ऐसी हालत में बिहार में दूसरे प्रोजेक्ट के बारे में विचार करना मुनासिब नहीं लगता.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा कंपनी की प्रशंसा पर उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सभी रियायतें व सुविधाएं दी हैं. वहां की निवेश नीति में किसी प्रकार का झोल नहीं है. नतीजतन, बेहतर रिस्पांस मिल रहा है. उन्होंने कहा कि उद्योग स्थापित करने के लिए स्वस्थ व पारदर्शी नीति, चिकनी सड़कें व 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए, कानून-व्यवस्था के साथ. बिहार की सड़कों में तो सुधार हुआ है, लेकिन बिजली की स्थिति दयनीय है. यहां निवेश नहीं होने के पीछे लालफीताशाही जिम्मेवार है. अगर राज्य सरकार ने लचीला रुख अपनाया होता, तो बिजली अब तक सुधर गयी होती और राज्य में उद्योग-धंधों की बाढ़ आ जाती. केवल बयानों में उद्योगों व निवेश को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है.