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बेटियों की घटती संख्या चिंताजनक

गया: ‘बेटी बचाओ आंदोलन’ के तहत प्रभात खबर के सहयोग से भूमिका विहार, प्रहरी व सीएसीटी के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को स्वराजपुरी रोड स्थित भारत सेवाश्रम संघ परिसर में ‘बेटियों की घटती आबादी : चुनौती और जिम्मेवारी’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. इसमें काफी संख्या में आये बुद्धिजीवियों ने अपनी बेबाक राय […]

गया: ‘बेटी बचाओ आंदोलन’ के तहत प्रभात खबर के सहयोग से भूमिका विहार, प्रहरी व सीएसीटी के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को स्वराजपुरी रोड स्थित भारत सेवाश्रम संघ परिसर में ‘बेटियों की घटती आबादी : चुनौती और जिम्मेवारी’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया.

इसमें काफी संख्या में आये बुद्धिजीवियों ने अपनी बेबाक राय रखी. सभी ने बेटियों की घटती आबादी पर चिंता जताते हुए दहेज प्रथा को इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार माना. विशिष्ट साहित्यकार व गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री डॉ राधानंद सिंह ने कहा कि सामाजिक व सांस्कृतिक जागरूकता के बगैर इस समस्या पर काबू पाना मुश्किल है.

डॉ सिंह ने कहा कि बेटियों की घटती आबादी के लिए सांस्कृतिक व धार्मिक संस्कृति में आया बदलाव सर्वाधिक जिम्मेवार है. आज के परिवेश में बेटियों की शादी बड़ा ही दुष्कर कार्य है. उन्होंने कहा कि बेटियों की घटती आबादी विश्व के लिए पर्यावरणीय समस्या भी है. भारतीय महिलाओं का संस्कार आदर्श है. उन्होंने कहा कि बेटा शादी तक फर्ज निभाता है और बेटी मृत्युर्पयत. बेटी सिर्फ देने का काम करती है, लेती कुछ भी नहीं. शायद इसी कारण महिला को प्रकृति की संज्ञा दी गयी है. उन्होंने कहा कि अन्य देशों की संस्कृति अपनाने से भारतीय संस्कृति का चेहरा बदला है. सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ मंजु शर्मा ने कहा कि लड़कियों की घटती आबादी बहुत बड़ी चुनौती है. यह समस्या हाल के वर्षो में तेजी से बढ़ी है. उन्होंने कहा कि महिलाएं भी महिलाओं की दुश्मन बन गयी हैं. साहित्यकार गोवर्धन प्रसाद सदय ने कहा कि दहेज रूपी दानव के लिए महिलाएं भी कम जिम्मेवार नहीं हैं. उन्होंने लड़कियों को शैक्षणिक रूप से संपन्न बना कर सामाजिक विकृतियों से लड़ने में उन्हें सक्षम बनाने का आह्वान किया.

सेमिनार को संबोधित करते हुए डॉ रामकृष्ण ने कहा कि 10 बेटों के बजाय एक बेटी को पढ़ाना ज्यादा अच्छा है. ताकि, हर परिस्थिति में बेटियों की सेवा मिलती रहे. उन्होंने समाज में आयी विकृतियों के लिए फिल्म इंडस्ट्री को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा कि ‘नन्हा फरिश्ता’ फिल्म में पहली बार बैंक की लूट दिखायी गयी थी. उसके बाद से बैंक लूट की घटनाएं आम हो गयीं. उन्होंने आज के परिवेश में विवेकानंद के चरित्र की प्रासंगिकता की आवश्यकता बतायी. डॉ नीता अग्रवाल ने कहा कि भ्रूण जांच के कारण ही बेटियों की आबादी में कमी आयी है.

लेकिन, इसके लिए न केवल डॉक्टर वरन समाज भी दोषी है. उन्होंने लड़कियों के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार की घटना के लिए महिला व पुरुष, दोनों को ही जिम्मेवार ठहराया. ‘प्रभात खबर’ के स्थानीय संपादक कौशल किशोर त्रिवेदी ने कहा कि ईमानदार पहल करने से ही ‘बेटी बचाओ आंदोलन’ सफल हो सकता है. महज कानून बनाने व जागरूकता के नाम पर तरह-तरह के कार्यक्रम चलाये जाने के बाद भी कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में इन मसलों के परिप्रेक्ष्य में जागरूकता कार्यक्रमों को री-डिजाइन व री-डिफाइन करने की आवश्यकता है. उन्होंने भी इस मामले में सुधार के लिए सामाजिक व सांस्कृतिक जागरूकता का पक्ष लेते हुए डॉक्टर सिंह का समर्थन किया. कार्यशाला को अधिवक्ता मुकेश कुमार, वीरेंद्र, शिल्पी, चाइल्ड लाइन की सुनीता शर्मा, महापौर विभा देवी, बोधगया नगर पंचायत की अध्यक्षा प्रीति सिंह, रुचि कुमारी व राजीव कुमार आदि ने संबोधित किया.

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