गया: भाकपा-माओवादी से हमेशा पंगा लेने वाले मोहनपुर थाने के नावाडीह निवासी संजय यादव की हत्या रविवार की रात कर दी गयी. इसके बाद से शेरघाटी अनुमंडल में एक बार फिर माओवादियों का खौफ कायम हो गया है.
माओवादियों (पहले एमसीसी) के क्रियाकलापों का विरोध करनेवाले संजय व उसके परिवार वाले 90 के दशक से ही हमेशा उनके निशाने पर रहे. संजय चार भाइयों में सबसे छोटा था. 1989 में संजय करीब आठ वर्ष का था, बड़े भाई चंदर यादव की शादी हुई. लेकिन, दो-तीन वर्ष बाद तक वह पिता नहीं बन सके. अप्रैल 1992 में चंदर यादव ने दूसरी शादी की. दुल्हन के साथ चंदर घर लौटा. इसी रात सात बजे नक्सलियों ने चंदर के घर पर हमला कर दिया.
सभी चंदर को ही खोज रहे थे. लेकिन, घर की महिलाओं ने नक्सलियों से बचाने के लिए चंदर को साड़ी पहना कर घर से निकालने की कोशिश की. लेकिन, नक्सलियों ने घर से निकलते समय चंदर को पकड़ लिया. और उसकी हत्या कर दी. इस सदमे से संजय के परिवार वाले उबर भी नहीं पाये थे कि करीब एक माह बाद नक्सलियों ने संजय के पिता हीरामन यादव को अगवा कर हत्या कर दी. पर, हीरामन यादव का शव नहीं मिला. उनके शव की बरामदगी को लेकर परिजन जंगलों में खाक छानते रहे.
जवान में कदम रखते ही थाम ली थी बंदूक!
दिमाग से शातिर संजय शारीरिक दृष्टिकोण से चुस्त व दुरुस्त था. जानकारी के अनुसार, बदला लेने के लिए जवानी में कदम रखते ही संजय ने बंदूक थाम ली. नक्सलियों द्वारा उनके परिवार को सताये जाने की घटना उसके दिलों-दिमाग में बसी थी. कुछ वर्षो तक उसने नक्सलियों का सहयोग भी किया. लेकिन, वर्ष 2000 के आसपास उसने नक्सलियों का दामन छोड़ दिया औश्र विरोध करना शुरू कर दिया.
2007 में माओवादियों ने संजय के घर में डायनामाइट लगा कर उड़ा दिया. इसके बाद नक्सलियों की गतिविधियों की जानकारी पुलिस को देकर मदद करना शुरू कर दी. गया के तत्कालीन एसपी अमित कुमार जैन के समय संजय चर्चा में रहा. माओवादियों से उसकी आंख-मिचौनी शुरू हो गयी. वर्ष 2009 में बाराचट्टी थाना क्षेत्र के भलुआ के पास संजय पर हमला हुआ, लेकिन बच गया. संजय ने गया शहर के रामपुर थाना क्षेत्र के मुस्तफाबाद कॉलोनी में ठिकाना बना कर पत्नी व परिजनों के साथ रहने लगा. इसी बीच 2010 में माओवादियों ने रामपुर थाना क्षेत्र में मुस्तफाबाद-शास्त्री नगर मुहल्ले में खुलेआम संजय पर हमला किया. लेकिन, बाल-बाल बच गये. इसके बाद उसे लाइसेंसी हथियार भी मिल गये.