गया: गया शहर में अधिकतर मांस-मछली की दुकानें बिना रजिस्ट्रेशन के ही चलायीं जा रही हैं. प्रशासनिक लापरवाही के कारण इन दुकानें में नियमों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. प्रशासन मौन है, पर मांस-मछली के दुकानदारों के मनमाने रवैये का खामियाजा आम लोग भुगत रहे हैं.
आलम यह है कि इन दुकानों के आसपास से गुजरना मुश्किल होता है. कई बार ऐसा भी होता है कि दुकानों में काटे जा रहे मांस के छींटे पास से गुजरने वाले लोगों के कपड़े पर पड़ते हैं. शिकायत करने पर उलटे दुकानदार लड़ने पर उतारू हो जाते हैं. ऐसा नहीं है कि प्रशासनिक अधिकारी इससे अनजान हैं, पर इतना जरूर है कि सब कुछ जानते हुए अनजान बने हैं और कार्रवाई नहीं की जा रही है.
सिर्फ 80-90 दुकानें पंजीकृत
इस मामले में निगम प्रशासन के पास कोई ठोस जवाब नहीं है. आधिकारिक सूत्रों की मानें, तो शहर में सिर्फ 80 से 90 दुकानें ही पंजीकृत हैं, जबकि विभागीय आंकड़े बताते हैं कि शहर में करीब 200 से 250 दुकानें चलायी जा रही हैं. बिहार नगरपालिका अधिनियम में स्पष्ट निर्देश है कि मुख्य नगरपालिका अधिकारी से प्राप्त अनुज्ञप्ति के बिना मांस-मछली कहीं भी नहीं बेचा जा सकेगा. बात अगर पंजीकृत दुकानों की करें, तो इसमें से शायद ही कोई ऐसी दुकान हो जो प्रशासनिक पंजीकरण के मानकों के हिसाब से चल रही हैं. इन दुकानों में बिना परदा किये ही मांस-मछली बेचे जाते हैं. नियम को लेकर भी अधिकारी संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहे हैं.
नियम की नहीं है जानकारी
आश्चर्य की बात यह है कि निगम के कई वरीय अधिकारियों को भी शहर के मांस मछली की दुकानों की स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है. इस मसले पर पूछे जाने पर अधिकारी कार्रवाई करने की बात कर पल्ला झाड़ रहे हैं. शहर में कितनी मांस-मछली की दुकानें बिना लाइसेंस के चल रही हैं? इस सवाल पर मेयर विभा देवी ने कहा कि फिलहाल उनके पास इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन ऐसी कई दुकानें हैं, जो बिना लाइसेंस के चल रही हैं. इन पर कार्रवाई के लिए जल्द तैयारी शुरू होगी.
इस बारे में डिप्टी मेयर अखौरी ओंकारनाथ उर्फ मोहन श्रीवास्तव भी इस सवाल का जवाब नहीं दे पाये. उन्होंने कहा कि विभागीय स्तर पर जांच करायी जायेगी. उन्होंने भी कार्रवाई किये जाने की बात कही. नगर आयुक्त दया शंकर बहादुर भी इस मामले में सटीक जवाब नहीं दे पाये. उन्होंने भी जांच कराने की बात कही.