गौरतलब है कि 2012 में तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी ने शिक्षक स्थापना समिति की एक बैठक कर 897 शिक्षकों की प्रोन्नति मैट्रिक प्रशिक्षित से स्नातक प्रशिक्षित वेतनमान पर दी थी. इसमें 69 वैसे शिक्षक भी शामिल थे, जो प्रोन्नति के लिए निर्धारित अर्हता पूरी नहीं करते थे. प्रोन्नत शिक्षकों की पोस्टिंग में भी भारी अनियमितता बरती गयी थी.
फलस्वरूप, मगध प्रमंडल के तत्कालीन क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक ने उन आदेशों को निरस्त कर दिया था. शिक्षा विभाग के निदेशक ने भी उप निदेशक के आदेश को उचित बताते हुए नये सिरे से स्थापना समिति की बैठक कर शिक्षकों की प्रोन्नति व पदस्थापन करने का आदेश दिया था. आदेशानुसार, शिविर लगा कर वरीयता क्रम में ऐच्छिक पोस्टिंग की गयी. लेकिन, वैसे 69 शिक्षकों को पूर्व के विद्यालय में वापस नहीं किया गया, जिनकी प्रोन्नति रद्द कर दी गयी थी. ऐसे में नवपदस्थापित स्कूलों में मैट्रिक प्रशिक्षित का पद रिक्त नहीं रहने के कारण प्रधानाध्यापक के रिक्त पदों से उनका वेतन भुगतान किया जाने लगा.
इस बीच अन्य कई शिक्षकों की भी पोस्टिंग अतिरिक्त पदों पर कर दी. बाद में इस पर जिला कोषागार पदाधिकारी ने यह कह कर भुगतान करने से मना कर दिया कि अतिरिक्त पद पर कार्यरत शिक्षकों को वेतन भुगतान नहीं किया जा सकता है. इसके विरोध में शिक्षक हाइकोर्ट चले गये. हाइकोर्ट ने उन शिक्षकों का रिक्त पदों पर समायोजन वेतन भुगतान सुनिश्चित करने का आदेश दिया है. इसी आलोक में शिविर लगाया जायेगा. हालांकि, इससे पहले पोस्टिंग के लिए शिक्षकों से अधीच्छा मांगी गयी थी, पर बात नहीं बनी. इधर, प्रभावित शिक्षकों का मानना है कि समस्या के समाधान के लिए जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा शिक्षा निदेशक से मार्गदर्शन की मांग की गयी थी, लेकिन बगैर मार्गदर्शन प्राप्त हुए ही समंजन के लिए आदेश जारी किया गया है.