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आंच न आने देंगे वतन पे..

गया: गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में शनिवार को काव्य चक्र के तहत कवियों की एक मंडली बैठी. अध्यक्षता सम्मेलन के सभापति गोवद्र्घन प्रसाद सदय ने की. काव्य संध्या की शुरुआत संजीत कुमार की वीर रस की कविता से हुई. उन्होंने कहा, ‘जान की बाजी लगा देंगे, अपनी जान गवां देंगे, आंच न आने […]

गया: गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में शनिवार को काव्य चक्र के तहत कवियों की एक मंडली बैठी. अध्यक्षता सम्मेलन के सभापति गोवद्र्घन प्रसाद सदय ने की. काव्य संध्या की शुरुआत संजीत कुमार की वीर रस की कविता से हुई. उन्होंने कहा, ‘जान की बाजी लगा देंगे, अपनी जान गवां देंगे, आंच न आने देंगे वतन पे, कुछ करके दिखला देंगे.’ चंद्रदेव प्रसाद केसरी ने तारा माता की वंदना की.

जयराम कुमार सत्यार्थी ने मगही कविता ‘अपन दुखवा केकरा से कहिओ’ का पाठ किया. डॉ राकेश कुमार सिन्हा रवि ने ‘हम लिखे-पढ़ेवाला के चैन कहां, आराम कहां’ का पाठ किया. संतोष कुमार क्रांति ने ‘हर नेता बिहार को नोचता है, अपने चंगुल में दबोचता है’ से नेताओं पर व्यंग्य कसा.

डॉ प्रकाश कुमार गुप्त ने अपनी कविता ‘यह है मेरा हिंदुस्तान’ के कुछ अंश पढ़े. मुद्रिका सिंह ने मगही कविता ‘हउआ से चुनाव के महक आवे लगल, घूम-घूम के नेतवन गाल बजावे लागल’ से चुनावी जिक्र किया. मुकेश कुमार सिन्हा ने ‘काश आश्वासन और बातों से हो जाता विकास, हर चेहरे पर रहता, मुस्कान और उल्लास’ का पाठ किया. जितेंद्र कुमार ने ‘मैं खेल किसी से लेता हूं, मैं बोल किसी से लेता हूं, मानव के मन की बातों को मैं तौल इसी से लेता हूं’ का पाठ किया. विजय कुमार सिन्हा ने कहा ‘रूप की पंखुड़ी धूप सी खिल गयी, जब भंवर ने कली के अधर छू लिये’.

डॉ ब्रजराज मिश्र ने कहा ‘अफसर नेता और कर्मचारी, चांदी के जूतों के सभी पुजारी’. सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र ने ‘कांप रहा है आज हिमालय, मैली गंगा की धारा है, भ्रष्टों का जय-जयकारा है, यह भारत देश हमारा है’ का पाठ किया. गोवद्र्घन प्रसाद सदय ने भी अपनी कविता ‘यह मंदिर है बहुत पुराना’ के कुछ अंश पढ़े. इस मौके पर नवीन कुमार, खालिक हुसैन परदेशी, डॉ सच्चिदानंद प्रेमी, योगेश कुमार मिश्र, राजेंद्र राज, डॉ सुधांशु, अश्विनी व शिव प्रसाद मुखिया ने भी काव्य पाठ किया.

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