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जेपीएन हॉस्पिटल में पकड़े गये अल्ट्रासोनोग्राफी के ‘खेल’ का मामला लाइसेंस रद्द, पर केस नहीं

गया: जयप्रकाश नारायण (जेपीएन) अस्पताल के अधीक्षक सह सिविल सजर्न डॉ अरविंद कुमार ने अस्पताल में पीपीपी मोड के तहत संचालित अल्ट्रासोनोग्राफी का लाइसेंस रद्द कर दिया है. हालांकि, अब तक अल्ट्रासोनोग्राफी मशीन रूम को न सील किया गया है और न ही पीपीपी मोड के तहत काम करनेवाली पटना की एजेंसी आइजीइएमएस के विरुद्ध […]

गया: जयप्रकाश नारायण (जेपीएन) अस्पताल के अधीक्षक सह सिविल सजर्न डॉ अरविंद कुमार ने अस्पताल में पीपीपी मोड के तहत संचालित अल्ट्रासोनोग्राफी का लाइसेंस रद्द कर दिया है. हालांकि, अब तक अल्ट्रासोनोग्राफी मशीन रूम को न सील किया गया है और न ही पीपीपी मोड के तहत काम करनेवाली पटना की एजेंसी आइजीइएमएस के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है. डॉ अशोक कुमार सिंह के नाम से अल्ट्रासोनोग्राफी का लाइसेंस है, लेकिन उनके विरुद्ध भी कोई कार्रवाई नहीं की गयी.

इससे सहज पता चलता है कि कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है. आम लोग यह सुन कर आश्चर्यचकित हैं कि अस्पताल अधीक्षक व उपाधीक्षक के चैंबर से कुछेक कदम की दूरी पर महीनों से बिना डॉक्टर के मरीजों की अल्ट्रासोनोग्राफी कैसे की जा रही थी? आखिर उन्हें जानकारी क्यों नहीं मिल पायी? यदि वास्तव में जानकारी नहीं थी, तो प्रशासनिक क्षमता पर प्रश्नचिह्न् लगना स्वाभाविक है.

गौरतलब है कि अस्पताल अधीक्षक व उपाधीक्षक डॉ विजय कुमार संयुक्त रूप से मंगलवार को अल्ट्रासोनोग्राफी रूम का औचक निरीक्षण करने पहुंचे थे. वहां एक अनधिकृत अकुशल टेक्नीशियन नीतीश कुमार को अल्ट्रासोनोग्राफी करता देख दोनों स्तब्ध रह गये थे. मौके पर कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था. देखते ही देखते टेक्नीशियन व अन्य स्टाफ फरार हो गये. बाध्य होकर अधिकारियों ने मरीजों को बाहर निकाल कर वहां ताला जड़ दिया था. आम आदमी के जेहन में सिर्फ एक ही सवाल उठ रहा है कि आखिर औचक निरीक्षण किया ही क्यों गया? जब इसके लिए जिम्मेवार लोगों के विरुद्ध कोई कार्रवाई ही नहीं की गयी? लाइसेंस रद्द करने से तो मरीजों की परेशानी ही बढ़ेगी. अल्ट्रासोनोग्राफी कराने के लिए उन्हें अब बाजारों में भटकना होगा और भुगतान भी करना होगा.
गौरतलब है कि जेपीएन अस्पताल में प्रतिदिन औसतन 85 अल्ट्रासोनोग्राफी होती है. स्वास्थ्य विभाग प्रति अल्ट्रासोनोग्राफी एजेंसी को 150 से 200 रुपये भुगतान करता है. इसके लिए मरीजों को बाजार में 700 से 900 रुपये भुगतान करने होंगे. यानी एक दिन में औसतन 68 हजार रुपये और महीने में करीब 17 लाख रुपये से ज्यादा का भुगतान करना होगा. इस प्रकार एक साल में दो करोड़ रुपये की सीमा पार कर जायेगा. इसमें कमीशन के रूप में मोटी रकम की गुंजाइश है.

फिलहाल प्राथमिकी की जरूरत नहीं : फिलहाल किसी के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने की आवश्यकता नहीं है. अल्ट्रासोनोग्राफी का लाइसेंस तत्काल रद्द कर दिया गया है. एजेंसी को तलब किया गया है. लाइसेंस कब और कैसे जारी किया गया है, इस बात का पता लगाया जा रहा है. आवश्यक समझा गया, तो जिम्मेवार लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी. मरीजों को अनावश्यक परेशानी नहीं हो, इसके लिए उन्हें प्रभावती अस्पताल में अल्ट्रासोनोग्राफी के लिए रेफर किया जा रहा है. विभाग को भी पत्र लिखा गया है, ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके.
डॉ अरविंद कुमार, अस्पताल अधीक्षक सह सिविल सजर्न

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