बैजू सिंह ने गरमी बेशर्मी व डॉ सुधांशु ने अबला की पुकार कविता पढ़ी. गजेंद्र लाल अधीर ने कहा-वृषभ गले में बजती घंटी, कृषक मन हर्षाया. कृषक िकशोरी ने तन-मन पर यौवन है गदराया, अबकी होगी मांग सिंदूरी, मन ही मन मुस्काती. आयी देखों वर्षा रानी, रिमङिाम गीत सुनाती. मुद्रिका सिंह ने अपनी कविता में कहा- गर दिल हमारा बच्चा होता, तो कितना अच्छा होता. राजीव रंजन ने धरती का श्रृंगार कविता में कहा-मंद-मंद मलयानिन का झोंका, धरा का पट धीरे से खोल रहा. स्वर्ग छोड़ धरती पर आने को, आज देवों का मन डोल रहा. खालिक हुसैन परदेसी ने गजल गाया-धूल मिट्टी में जहां खेला है बचपन अपना, याद आता है बहुत गांव का आंगन अपना. जात मजहब के ये झगड़े को मिटाओं मिल कर. जल न जाये कहीं ये आग में गुलशन अपना. संजीत कुमार ने अपने गीत में गाया-कहीं आफत है, कहीं राहत है, कहीं पतझड़ है, कहीं सावन है, ऐ मौसम तू बड़ा बेईमान है. संतोष कुमार क्रांति ने देश भक्ति कविता सुनायी-तुम करती हो क्यू इतना गम, ऐ भारत मां तेरी संतान हैं हम. विजय कुमार सिन्हा ने गाया-ऐसी चली व्यंग्य की आंधी, गीत हुआ बैरागी, पीर उलझती रही शूल से, प्यार हो गया बागी.
डॉ ब्रजराज मिश्र ने कहा-जीवन सफर की राह में सुख दुख के सब आयाम साथी. मुकेश कुमार सिन्हा ने नेताओं पर व्यंग्य किया-दिल्ली जाकर तुम ऐसे भुला देते हो. जिंदा हैं या मर गये, कोई खोज खबर लेते हो. मंटू शर्मा ने अपने गजल में गाया- जिंदगी फिर तुङो सलाम लिखूं, फिर एक खत जाने वफा के नाम लिखूं. वो वादियां, वो हवायें, वो चांदनी रातें. तेरे आंचल की महक व प्यार की बातें. डॉ रामकृष्ण ने कहा-दरकी मसजिद की दिवारें, चिंता कौन करे ? कंगुरों के चिल्लाने के दिन जो आये हैं. इस अवसर पर सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र ने बंटवरा, डॉ राकेश कुमार सिन्हा रवि ने पार्टी, प्रिंस ने बांध के अलावा जयराम कुमार सत्यार्थी, अश्विनी, डॉ प्रकाश, चंद्र देव प्रसाद केशरी, नवीन कुमार, शिव प्रसाद मुखिया जी ने भी अपनी कविताएं सुनायीं. गोवर्धन प्रसाद सदय ने कहा कि अब जरूरत है कि सम्मेलन से कवियों की कविताओं का संग्रह प्रकाशित हो. इस अवसर पर उपेंद्र सिंह, धर्मेद्र, अखिलेश्वर, जितेंद्र, बिंदु सिंह सहित अन्य उपस्थित थे.