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एनआरआइ महिलाओं ने मांगा मोक्ष

गया: आधुनिकता के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि वह अपने विकास के क्रम में सभ्यता, संस्कार व संस्कृति को पीछे छोड़ देती है. इसके पहिये पर आरूढ़ लोग अपने वर्तमान रिश्तों की मर्यादा को भूल जाते हैं, पूर्वजों को क्या याद रखेंगे. वे पुरातन रीति-रिवाजों से दूर होने लगते हैं. लेकिन, इसे […]

गया: आधुनिकता के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि वह अपने विकास के क्रम में सभ्यता, संस्कार व संस्कृति को पीछे छोड़ देती है. इसके पहिये पर आरूढ़ लोग अपने वर्तमान रिश्तों की मर्यादा को भूल जाते हैं, पूर्वजों को क्या याद रखेंगे. वे पुरातन रीति-रिवाजों से दूर होने लगते हैं. लेकिन, इसे अंतिम सत्य मान लेना उचित नहीं होगा, क्योंकि आधुनिकता चाहे जितनी भी हावी हो जाये, सभ्यता व संस्कृति की जड़ को हिला नहीं सकती.

इसकी मिसाल गया में चल रहे पितृपक्ष मेले के दौरान देखने को मिली, जब दो अप्रवासी महिलाओं ने अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान किया. यह संयोग ही है कि दोनों महिलाएं कानपुर क्षेत्र से ही आती हैं. इनमें पहली महिला किरण तिवारी, जो उन्नाव से आयी हैं. इनके पति अमेरिका में सांख्यिकी विषय के प्रोफेसर हैं. किरण तिवारी ने बताया कि वह पति की अनुपस्थिति में अपना फर्ज पूरा कर रही हैं. दरअसल, वह अपने सास-ससुर व माता-पिता के लिए पिंडदान करने गया आयी हैं. किरण स्वयं बैंक से सेवानिवृत्त हैं और अभी गृहस्थ जीवन के दायित्वों का निर्वहन कर रही हैं.

उनकी बातचीत में शालीन आधुनिकता झलकती है. उनका कहना है कि वह गया में दो दिनों तक रुक कर पितरों के लिए पिंडदान करेंगी. इधर, अमेरिका से आयीं विजेता ने अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान किया. इनके पति भी अमेरिका में ही एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में निदेशक के पद पर कार्यरत हैं. विजेता कहती हैं कि मैं मूल रूप से कानपुर की हूं, लेकिन पति के अमेरिका में कार्यरत होने की वजह से हम अमेरिका में ही रहते हैं. लेकिन, इसका यह मतलब नहीं कि हम अपनी संस्कृति व संस्कार को भूल जायें. हम अमेरिका में रह कर आधुनिक जरूर हुए हैं, लेकिन इससे हम अपने संस्कार व रीति-रिवाजों के काफी करीब आ गये हैं.

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