गया: गया में श्रद्धकर्म को लेकर पंच पौनिया की पूछ बढ़ गयी है. पितृपक्ष मेले के कारण उन्हें रोजगार भी मिल रहा है. हालांकि पंच पौनिया में इंजीनियरिंग व कला से जुड़े कुंभकार व बढ़ई को पितृपक्ष में खास अवसर नहीं मिलता है, लेकिन ब्राह्नाण, नाई (हजाम) व धोबी को तो इसमें सीधा लाभ मिलता है. यहां से जो लोग अपने घर जाते हैं, वह अपने कपड़े धुलने के लिए धोबी को देते हैं.
तभी वे कपड़े घर में लोग रखते हैं. पहले बढ़ई की भी जरूरत पड़ती थी, दान में देने के लिए खाट, पलंग व अन्य लकड़ी के सामान बनाने के लिए. पर, अत्याधुनिक व तकनीकी युग में अब लोग फोल्डिंग आदि से काम चला लेते हैं. घाटों पर नाइयों, ब्राrाणों की भौतिक उपस्थिति बता रही है कि उनकी उम्मीदों को पंख लग गये हैं. मिट्टी के बरतन की इस कर्मकांड में जरूरत पड़ती है. हालांकि, उनकी जगह भी अब धीरे-धीरे फोबिया व प्लास्टिक के प्याले व थाली ने ले ली है.
कुछ एक वर्षो में लगता है कि सीधे तौर पर ब्राह्नाण व नाई की ही जरूरत समझी जायेगी. पिंडदान व तर्पण के लिए मंत्रोच्चर करने के लिए ब्राह्नाणों की जरूरत पड़ती है, जबकि पिंडदान से पूर्व व बाद में बाल, दाढ़ी का मुंडन कराने की जरूरत बताते हुए नाई तीर्थयात्रियों का मुंडन करते हैं. इसके लिए घाटों पर नाइयों की भी जरूरत होती है.
हालांकि, इस बार पंडाजी, ब्राह्नाण, नाई व घरनई वाले केवट की भी उम्मीदों पर पानी फिर गया. पितृपक्ष मेले को 12 दिन गुजर चुके हैं और अनुमानत: अब तक चार लाख के करीब तीर्थयात्री गयाधाम पहुंच सके हैं. इनमें ढेर सारे राज्य के विभिन्न जिलों से भी आये हैं. लेकिन, विभिन्न कारणों से इस बार गयाजी पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या में कमी आयी है.