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फूलों की खेती से महका घर-आंगन
मोहड़ा: गया जिले के मोहड़ा प्रखंड की सारसू पंचायत के सौफी माली फूलों की खेती कर अपना व परिवार का भविष्य संवार रहे हैं. उनका परिवार कभी दाने-दाने को मुहताज था, लेकिन विगत तीन साल से फूलों की खेती कर उनके जीवनस्तर में काफी बदलाव आया है. अब उन्हें अपनी बेटी की शादी की भी […]
मोहड़ा: गया जिले के मोहड़ा प्रखंड की सारसू पंचायत के सौफी माली फूलों की खेती कर अपना व परिवार का भविष्य संवार रहे हैं. उनका परिवार कभी दाने-दाने को मुहताज था, लेकिन विगत तीन साल से फूलों की खेती कर उनके जीवनस्तर में काफी बदलाव आया है. अब उन्हें अपनी बेटी की शादी की भी चिंता नहीं रही. अब तो वह आसपास के लोगों के लिए प्रेरणास्नेत बन गये हैं.
तीन साल पहले शुरू की थी खेती : सौफी माली अपने गांव के एक किसान से आठ हजार रुपये प्रति कट्ठे की दर से चार कट्ठा जमीन लेकर तीन साल पहले फूलों की खेती शुरू की थी. इसके लिए उनके एक रिश्तेदार पटना के हरनौत निवासी गिरिधर चक ने प्रोत्साहित किया था. वह भी फूलों की खेती करते थे. उनसे टिप्स लेकर सौफी ने फूलों की खेती शुरू की. फिलहाल इससे उन्हें लाभ हो रहा है. फूलों की खेती से होनेवाली आय से वह सात लोगों का बेहतर तरीके से भरण-पोषण कर रहे हैं.
चीना, चेरी व गेंदा की करते हैं खेती : सौफी चीना, चेरी फूल व गेंदा सहित अन्य फूलों की खेती करते हैं. सौफी के लहलहाते फूलों को देख कर आसपास के लोग भी प्रफुल्लित होते हैं.
कोलकाता, राजगीर व रांची भेजे जाते हैं फूल : सौफी माली के फूल कोलकाता, राजगीर, रांची व अन्य शहरों में भेजे जाते हैं. चीना व चेरी फूल की खेती काफी कम होती है. इसे लेकर उनके फूलों की काफी डिमांड है. सौफी माली का कहना है कि इस क्षेत्र में पटवन व रोग के कारण परेशानी होती है. सौफी बताते हैं कि इस कारण फूल नष्ट हो जाते हैं. अगर सरकारी सहायता मुहैया करायी जाये, तो वह भी लीज पर खेती कर लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे. इससे क्षेत्र में खुशहाली आयेगी. हालांकि, उनका कहना है कि फूलों की खेती के लिए सबसे बड़ी समस्या पटवन की ही है. सिंचाई के लिए वह दूसरों पर आश्रित हैं. डीजल पंपसेट के माध्यम से पटवन करते हैं. इसके लिए प्रति घंटा उन्हें 100 रुपये के हिसाब से भुगतान करना पड़ता है. सौफी के दो बेटे व दो बेटियां हैं. पैसे के अभाव के कारण बेटी के ब्याह की चिंता थी. अब बेटी की शादी की उतनी चिंता नहीं. सालोंभर का खान-पान, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के बाद भी कुछ पैसे बच ही जाते हैं, उन पैसों को वह बेटी की शादी के लिए बैंक में जमा करते हैं.
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