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जेइ न हो, ऐसा करें उपाय : मेहरोत्रा
गया/बोधगया : किसी भी बीमारी से निबटने के लिए जरूरत के मुताबिक तरह-तरह के उपाय करने पड़ते हैं. इसमें चूक होने पर कई बार बड़ी क्षति हो जाती है. किसी मरीज के जीवन को बड़ी क्षति नहीं पहुंचे, इसके लिए जरूरी है कि बीमारी को ही उससे दूर रखा जाये. जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेइ) के मामले […]
गया/बोधगया : किसी भी बीमारी से निबटने के लिए जरूरत के मुताबिक तरह-तरह के उपाय करने पड़ते हैं. इसमें चूक होने पर कई बार बड़ी क्षति हो जाती है. किसी मरीज के जीवन को बड़ी क्षति नहीं पहुंचे, इसके लिए जरूरी है कि बीमारी को ही उससे दूर रखा जाये. जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेइ) के मामले में भी ऐसे कदम उठाये जाने चाहिए कि कोई बच्चा इसकी चपेट में आये ही नहीं. उसे अस्पताल ले जाने की नौबत ही न आये.
ये बातें राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्र ने कहीं. शुक्रवार को वह बोधगया में जेइ (एइएस) की रोकथाम पर मंथन के लिए आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे. अपने संबोधन में श्री मेहरोत्र ने कहा कि जेइ के मामले में सर्वाधिक जरूरत इस बात की है कि लोगों में इसे लेकर व्यापक जागरूकता पैदा की जाये. इसके लिए नयी रणनीति पर काम करना होगा.
जेइ हो ही नहीं, इसके लिए आमलोगों में जागरूकता को जरूरी बताते हुए श्री मेहरोत्र ने कहा कि अब समय आ गया है कि हमें इसे लेकर काफी गंभीर होना होगा.
समय रहते बीमारी से निबटने की तैयारी तो करनी ही होगी, बीमारी हो नहीं, इसके लिए काम शुरू करना है. इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि लोगों को जेइ से जुड़े तथ्यों से अवगत कराया जाये. यह भी कि इस मामले में जमीनी स्तर पर जागरूकता पैदा करने के लिए आशा, आंगनबाड़ी सेविका और एएनएम के साथ ही शिक्षकों व पंचायती राज प्रतिनिधियों की भी सेवाएं ली जायें.
उन्होंने कार्यशाला में भाग ले रहे विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों को निर्देश दिया कि वे जेई के खिलाफ जागरूकता व प्रचार अभियान में बड़े पैमाने पर हैंडबिल, बैनर, पोस्टर और माइकिंग आदि का उपयोग करें. श्री मेहरोत्र के अनुसार, स्कूलों में भी जेई को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए, ताकि घर लौट कर बच्चे अपने परिवार में जेइ की मॉनिटरिंग कर सकें.
ट्रेनिंग कैलेंडर बनाने का निर्देश
श्री मेहरोत्र ने कार्यशाला में कहा कि जेइ के मामले में गया की स्थिति मुजफ्फरपुर से अलग है. मुजफ्फरपुर में जेई के प्रभाव में आनेवाले इलाके चिन्हित हैं. वहां खास-खास ब्लॉक हैं, जहां से इंसेफ्लाइटिस के तमाम मामले आते हैं. पर, गया में सभी प्रखंडों में जेई पीड़ित बच्चे मिलते रहे हैं.
उन्होंने कार्यशाला में भाग ले रहे मगध प्रमंडल के सभी जिलाधिकारियों से कहा कि वे जेइ के खिलाफ जागरूकता अभियान के तहत ट्रेनिंग प्रोग्राम का कैलेंडर जारी कर आशा, एएनएम और आंगनबाड़ी सेविका के साथ ही शिक्षक व पंचायत स्तरीय जनप्रतिनिधियों का प्रशिक्षण शुरू करायें. यह भी कि ब्लॉक स्तर पर कम से कम पांच बेड व जिला स्तर पर 10 बेड का स्पेशल वार्ड पहले से ही तैयार रखें, ताकि वक्त पर कोई दिक्कत न पेश आये.
मरीज को रेफर न कर, खुद इलाज शुरू करें
श्री मेहरोत्र ने अपने निर्देश में कहा कि बच्चों के बीमार पड़ने की जानकारी मिलते ही बिना विलंब उसे नजदीकी सरकारी अस्पताल में पहुंचाया जा सके, इसकी गारंटी करनी होगी. अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों को तुरंत ऐसे मामलों में सक्रिय होना होगा. डॉक्टरों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वे जेइ के मामले में इलाज की बात सोचने से पहले मरीज को कहीं और रेफर करने की न सोचें. इस रवैया का त्याग करें. इससे मरीजों की जान बचाने में काफी मदद मिलेगी.
श्री मेहरोत्र ने कहा कि अधिकतर मामलों में इलाज शुरू होने में विलंब के चलते जान चली जाती है. अगर जान नहीं भी गयी, तो मरीज विकलांग होकर परिवार के साथ ही देश-समाज पर भार बन जाते हैं. लगे हाथ उन्होंने अस्पताल प्रभारियों को सख्त हिदायत दी कि वे आयुष चिकित्सकों को इमरजेंसी सेवा में न लगायें. क्योंकि,जेइ जैसे मामले में उनके भरोसे काम नहीं चलेगा.
जेइ पीड़ितों के लिए तरल दवाएं, एयरकंडिशंड स्पेशल वार्ड
कार्यशाला में अपनी बातें रखते हुए प्रधान सचिव ने सलाह दी कि जेइ के मामले में मरीज बच्चों के लिए टैबलेट, कैप्सूल की जगह तरल दवाएं दी जायें. उन्होंने कहा कि दवाएं स्टॉक करते समय ध्यान रखा जाये कि जेइ पीड़ितों के लिए मुख्य रूप से सीरज व इंजेक्शन का भरपूर इंतजाम रहे.
मरीजों को राहत मिले, इसके लिए श्री मेहरोत्र ने डॉक्टरों व अस्पताल प्रभारियों से कहा कि जेइ पीड़ितों के लिए स्पेशल वार्ड बनायें और उसकी एयरकंडिशनिंग सुनिश्चित करायें. जरूरत पड़े, तो अस्पताल परिसर में दूसरे कमरों में लगे एयरकंडिशनर को निकाल कर जेइ वार्ड में लगवायें, ताकि पीड़ित बच्चों को राहत मिल सके. प्रधान सचिव ने कार्यशाला में आये सभी डीएम व सिविल सजर्नों से मौजूदा इंतजाम व खामियों के बारे में भी जानकारी मांगी.
निजी एंबुलेंस के लिए खर्च देने का निर्देश
श्री मेहरोत्र ने कहा कि जेइ की चपेट में अधिकतर गरीब परिवारों के बच्चे ही आते हैं. उनके सामने पैसे का संकट होता है. इसका ध्यान रखते हुए हर पीएचसी में पहले से एंबुलेंस तैयार रखा जाना चाहिए. यह इंतजाम चौबीसों घंटे रहना चाहिए. अगर ड्राइवर की कमी हो, तो ठेके पर और ड्राइवर रखे जायें. इससे भी काम न चले, तो निजी एंबुलेंस की सेवा भी स्वीकार होगी. अगर कोई अपने बच्चे को निजी एंबुलेंस से लेकर अस्पताल पहुंचता है, तो उसे एंबुलेंस का खर्च देना है. इतना ही नहीं, मरीज की देखरेख में लगे दो लोगों के भोजन की सुविधा भी दी जाये.
2014 में सबसे ज्यादा मरीज, सबसे ज्यादा मौत
जेइ (एइएस) की चपेट में आनेवाले बच्चों की संख्या के लिहाज से वर्ष 2014 सबसे खराब रहा. लगातार प्रयास के बावजूद, इन बीमारियों पर अंकुश नहीं दिख रहा. प्रकोप कम होने की जगह बढ़ता ही दिख रहा है. 2014 में पूरे राज्य में सबसे अधिक 1341 बच्चे जेई (एइएस) की चपेट में आये. इनमें 378 की मौत हो गयी. जेइ के चलते 2014 में काल-कवलित हुए बच्चों की संख्या भी पिछले 10 वर्षो में सबसे ज्यादा है. 2006 इस लिहाज से सबसे बेहतर वर्ष रहा, जब पूरे सूबे में जेइ (एइएस) के मात्र 21 मामले सामने आये. तब मौत भी केवल तीन बच्चों की हुई थी.
मृत्यु दर में गया से बेहतर है मुजफ्फरपुर
एइएस के मामले में पिछले वर्ष की स्थिति का एक तुलनात्मक अध्ययन कर बताया गया है कि मुजफ्फरपुर में मृत्यु दर जहां 12.2 प्रतिशत रहा, वहीं गया में 30 प्रतिशत. मुजफ्फरपुर में एक खास बात यह भी रही कि वहां अधिकतर मामले ग्रामीण अंचलों से ही आये. गया की स्थिति अलग थी. यहां गांवों के साथ ही शहरी इलाकों से भी इस तरह के मरीज सामने आये. गया में सभी मरीज तेज सिर दर्द की शिकायत के साथ आये, जबकि मुजफ्फरपुर में कुछ के मामले में ऐसा नहीं भी था.
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