गया: जीवन में साहित्य भी काफी अहमित रखता है. इसका रोल विवेक पैदा करने वाला होना चाहिए, ताकि आदमी सही-गलत की पहचान कर सके. बाजार की नीयत भी देखी जानी चाहिए. बाजारू बाजार का विरोध करना चाहिए. ये बातें मशहूर पत्रिका हंस के संपादक संजय सहाय ने कहीं. वह यहां महावीर स्कूल के सभा में प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के 10वें जिला सम्मेलन के दूसरे सत्र में ‘मौजूदा चुनौतियां और लेखकों की भूमिका’ विषय पर एक परिचर्चा में भाग लेते हुए बोल रहे थे.
कार्यक्रम में अपनी बातें रखते हुए प्रलेस के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ रवींद्र राय ने कहा कि साहित्यकार को उपेक्षित, दलित व वंचित वर्ग के लोगों का हिमायती होना चाहिए. यही साहित्यकारों का फर्ज भी है. आज के बाजारू दौर में लेखकों को अपना निर्णय लेते समय विवेका की मदद लेनी चाहिए. डॉ राय ने कहा कि अब तो मीडिया भी पूंजीवाद की चाकर है. साउथ बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी (एससीयूबी) के हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर योगेश प्रसाद शेखर ने कहा कि लोग साहित्य से काफी उम्मीदें रखते हैं. पर, अब पहले वाली बात नहीं रही. आज साहित्य की दुनिया भी काफी बदल गयी है. अब तो साहित्य भी बाजारवादी हो गया है.
आयोजन के तह कवि-सम्मेलन सह मुशायरे का भी आयोजन किया गया. मगही कवि संजीव कुमार ने ‘लोकतंत्र का प्रपंच’ नामक एक लघु नाटक की प्रस्तुति दी, जिसे कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने काफी सराहा. कार्यक्रम के मंच का संचालन अरुण हरलीवाल ने किया.
उधर, सम्मेलन के सांगठनिक सत्र में प्रलेस की गया जिला इकाई की नौ सदस्यीय नयी समिति गठन भी किया गया. प्रलेस के नये अध्यक्ष के रूप में कृष्ण कुमार का चुनाव हुआ. अरुण हरलीवाल उपाध्यक्ष बनाये गये. परमाणु कुमार को सचिव तथा डॉ अब्दुल मन्नान अंसारी को संयुक्त सचिव बनाया गया. नयी कमेटी में प्रभात रंजन उप सचिव की भूमिका में होंगे. नयी कमेटी के सदस्य के रूप में डॉ पप्पू तरुण कोषाध्यक्ष का दायित्व संभालेंगे. इनके साथ पद्मा मिश्र, डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव व सुशील शर्मा भी सहयोग करेंगे.