गया: प्रेमचंद जयंती के अवसर पर बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के संगोष्ठी कक्ष में परिचर्चा आयोजित किया गया. इसमें प्रेमचंद के योगदान को रेखांकित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उनके कहानियों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है. भारतीय भाषा केंद्र के डॉ योगेश प्रताप शेखर ने कहा कि प्रेमचंद की भाषा सरल है. डॉ कर्मानंद आर्य ने कहा कि समकालीन दौर में जारी स्त्री व दलित विमर्श का प्रस्थान बिंदु प्रेमचंद का साहित्य ही है.
हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक शांति भूषण ने कहा कि आधुनिकता की चका-चौंध में आज ग्रामीण यथार्थ पर लेखकों का ध्यान नहीं है. सहायक प्राध्यापक अनुज लुगुन ने कहा कि प्रेमचंद साहित्य में आम मनुष्यों को प्रतिष्ठित किया. अंगरेजी विभाग की ब्यूटी यादव ने कहा कि अंगरेजी में अनूदित प्रेमचंद साहित्य पढ़ने से उसकी शक्ति का पता चलता है. हिंदी अधिकारी प्रतीश कुमार दास ने कहा कि प्रेमचंद ग्राम्य जीवन के चतुर चितेरे थे.
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर इंचार्ज डॉ आलोक गुप्त ने की. इस अवसर पर डॉ संजीव, डॉ हरेश पांडेय, प्रणव, प्रशांत, सुमित पाठक, आशीष पाठक, सुरेश कुरापति, सुश्री ऋचा आदि लोग मौजूद थे.