गया: शहर में नियम तोड़ने वाले ऑटो चलाने वालों पर तो कभी-कभी कार्रवाई होती रहती है. लेकिन, प्रशासन का ध्यान शायद स्कूली बच्चों के ऑटो की ओर नहीं जाता. ऑटो में प्रतिदिन हजारों बच्चे जान जोखिम में डाल कर स्कूल जाते हैं. नियमों को ताक पर रख कर बच्चों को ऑटो में स्कूल ले जाया जाता है. ऑटो ड्राइवर बच्चों को क्षमता से अधिक बैठाते हैं. इसमें बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरा जाता है. मानो बच्चे नहीं, कोई सामान है. चालक बच्चों को आगे-पीछे व अपनी सीट के आसपास काफी बच्चों को बैठा लेते हैं, जो हमेशा जोखिम को आमंत्रण देता है.
ऑटो वाले अधिक पैसे कमाने के लिए क्षमता से अधिक बच्चों को अपने गाड़ी में बैठाते हैं. पिछले दिनों एक प्राइवेट स्कूल के बच्चे ऑटो के पीछे बैठ कर आपस में लड़ते देखे गये. शायद भीड़ अधिक होने के कारण लड़ रहे थे. ऑटो पर बच्चों को पैर बाहर लटका कर बैठे हुए देखा गया. इन सब प्रशासन बेखबर है और ऑटो चालक लापरवाही में गाड़ी दौड़ा रहे हैं.
क्या नहीं है अभिभावकों को चिंता !
ओवरलोडेड ऑटो में अपने बच्चे को सफर करने देने के सवाल पर अधिकांश अभिभावक चुप हैं, तो कुछ अपनी मजबूरी गिना कर बात को टाल देते हैं. हालांकि, अभिभावकों के चेहरे पर चिंता की लकीरें जरूर हैं. बच्चों को स्कूल ले जाने वाले ये ऑटो प्राइवेट होते हैं. स्कूल से इन्हें कोई मतलब नहीं होता. अभिभावक खुद अपने बच्चों को भेजने के लिए ऑटो तय करते हैं. गौर करने वाली बात यह है कि अधिकांश अभिभावकों को ऑटो की स्थिति की जानकारी होती है.