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स्कूलों में नहीं बजती खेल की घंटी

अधिकांश विद्यालयों में नहीं है खेल का मैदानमोहनिया. अजीब हाल है सरकारी व्यवस्था का. सरकारी विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम लागू तो कर दिया गया. यहां तक की खेल की घंटी भी दिनचर्या में शामिल है. मगर, दुर्भाग्य देखिए कि अधिकांश सरकारी विद्यालयों में खेल का मैदान नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों से […]

अधिकांश विद्यालयों में नहीं है खेल का मैदानमोहनिया. अजीब हाल है सरकारी व्यवस्था का. सरकारी विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम लागू तो कर दिया गया. यहां तक की खेल की घंटी भी दिनचर्या में शामिल है. मगर, दुर्भाग्य देखिए कि अधिकांश सरकारी विद्यालयों में खेल का मैदान नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों से कहीं अधिक शहरी क्षेत्र के विद्यालयों के पास खेल का मैदान नहीं है. जिले की सरकारी विद्यालयों में गुणवत्ता पूर्ण मिशन अंतर्गत कराये गयी जांच प्रतिवेदन में 80 फीसदी विद्यालयों के पास खेल का मैदान नहीं है, जिसके कारण विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम बेमानी साबित हो रही है. जिले में शारीरिक शिक्षा का यह दिलचस्प पहलू है कि शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण बहुत कम ऐसे विद्यालय हैं जहां शारीरिक शिक्षा के तहत खेल की घंटी बजती हो. मैदान नहीं होने के कारण अधिकांश विद्यालयों के बच्चे खेल का आनंद नहीं उठा पाते. प्रधानाध्यापकों की बात माने तो खेल की घंटी नहीं बजने के कई कारण है मैदान व शारीरिक शिक्षकों की कमी इसकी एक बड़ी वजह है.क्या कहते हैं बीइओ ग्रामीण क्षेत्रों में जिस विद्यालय के पास खेल का मैदान नहीं है उस विद्यालय के आसपास यदि सरकारी जमीन है तो उसे विद्यालय के नाम ट्रांसफर किया जा सकता है. ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालय में किया भी गया है. मगर, शहरी क्षेत्रों के विद्यालय में किया भी गया है. मगर, शहरी क्षेत्र में इस मामले में कोई प्रगति नहीं है. कारण शहरी क्षेत्र में सरकारी विद्यालयों के आसपास न तो सरकारी जमीन मिलती है और न ही प्राइवेट. लिहाजा विद्यालयों को खेल का परिसर उपलब्ध कराने में विभाग चाह कर भी कुछ कर नहीं पाता है. अरुण प्रकाश, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी

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