गया: शेरघाटी प्रखंड क्षेत्र के तरोवा गांव निवासी अरुण कुमार रजक पिता स्व शहबीर रजक दोनों हाथों से विकलांग है. वह दो भाइयों व तीन बहनों में एक भाई से छोटा है. बड़े भाई ने परिवार से खुद को अलग कर लिया है. अब विधवा मां व तीन बहनों का निर्वहन उसी के कंधों पर है. इसके बाद भी उसने घबराने की बजाय दृढ़ निश्चय कर इसे स्वीकार किया. उसने शेरघाटी में एक कोचिंग शुरू किया. इसके साथ अपनी पढ़ाई-लिखाई भी जारी रखी.
नहीं बनने दिया बाधक
उपेंद्र नाथ वर्मा उच्च विद्यालय सिमारू से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद श्री महंत शतानंद गिरि कॉलेज, शेरघाटी में उसने इंटर में नामांकन कराया. इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद वह तीन वर्षीय स्नातक प्रतिष्ठा (इतिहास,फाइनल इयर) की परीक्षा गया कॉलेज परीक्षा केंद्र पर दे रहा है. वह कहता है कि विकलांगता के कारण उसे कभी-कभी बहुत परेशानी होती है. लेकिन, मैंने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया. मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं विकलांग हूं. इस कारण दूसरी तरह की शक्ति मिलती है और किसी काम को पूर्वक संपन्न करने में सफल रहता हूं.
उसने बताया कि वह फिलहाल कंपीटीशन परीक्षा की तैयारी कर रहा है. उसका कहना है कि सफलता मिलने पर वह अपने परिवार के सदस्यों का अच्छी तरह से जीविकोपाजर्न तो करेगा ही, गरीबों व असहायों की मदद भी करेगा. क्योंकि, उसे भी कुछ लोगों से सहायता मिल जाती है. इस कारण उसका दायित्व भी सेवा करना बनता है. वह परिवार का दायित्व उठाने को भी अपनी खुशकिस्मती मानता है.