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‘सौभाग्य है कि सीएम गया के हैं’

गया: मजहबी तालीम की पुरानी संस्था 1877 में स्थापित दुर्गाबाड़ी रोड स्थित मदरसा कासमिया इसलामिया में न सिर्फ बिहार के विभिन्न जिलों, बल्कि झारखंड, ओड़िशा व पश्चिम बंगाल के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं. संस्थान सोमवार की शाम को सीएम जीतन राम मांझी का स्वागत व सम्मान करेगा. मदरसा कासमिया इसलामिया के संचालक कारी मोहम्मद […]

गया: मजहबी तालीम की पुरानी संस्था 1877 में स्थापित दुर्गाबाड़ी रोड स्थित मदरसा कासमिया इसलामिया में न सिर्फ बिहार के विभिन्न जिलों, बल्कि झारखंड, ओड़िशा व पश्चिम बंगाल के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं.

संस्थान सोमवार की शाम को सीएम जीतन राम मांझी का स्वागत व सम्मान करेगा. मदरसा कासमिया इसलामिया के संचालक कारी मोहम्मद मोइनुद्दीन कासमी, जो बिहार जमीयत उलेमा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं, ने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि सीएम जीतन राम मांझी गया के निवासी हैं.

मदरसा कासमिया इसलामिया में इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, लालू प्रसाद, विधान परिषद के सभापति गुलाम सरवर, मंत्री डॉ शकील अहमद खां, स्व शकील खान, डॉ मोनाजिर हसन, शाहिद अली खान, अली मियां व डॉ सुरेंद्र प्रसाद यादव आदि राजनेता आ चुके हैं. उन्होंने बताया कि यह संस्थान दारूल उलूम, देववंद विश्वविद्यालय, दिल्ली के संरक्षण में संचालित है, जिसकी 100 शाखाएं बिहार, झारखंड, ओड़िशा व पश्चिम बंगाल में हैं. यहां 150 बच्चे आवासीय रूप से मजहबी तालीम हासिल करते हैं.

उनके रहने, खाने व पहनावे के मुफ्त इंतजाम हैं. यह न तो सरकारी है और न ही इसे सरकारी अनुदान प्राप्त होता है. संस्था चंदे पर आश्रित है. यहां बच्चे कुरान, हदीस व फिकह के अलावा हिंदी व अंगरेजी की भी पढ़ाई पढ़ते हैं. यहां से आगे की पढ़ाई के लिए बच्चे जामिया इसलामिया यूनिवर्सिटी आदि में जाकर दाखिला लेते हैं. यहां 12 शिक्षक हैं. गौरतलब है कि स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अब्दुल गफ्फार ने 1877 में इसकी स्थापना की थी. 1920-22 के आसपास बिहार की पहली हिंदू-मुसलिम एकता की बैठक यहीं हुई थी. स्वतंत्रता सेनानी मौलाना खैरउद्दीन भी इसके संचालक रहे. इसके सरपस्तों में मौलाना सैयद हुसैन मदनी भी रहे. उनके नाम पर यहां एक कॉन्फ्रेंस हॉल भी है. फिलहाल 40 बड़े कमरे व कई हॉल हैं, जहां बच्चे रह कर पढ़ते हैं. बच्चे जहां पढ़ते हैं, वह पूरी तरह वातानुकूलित है. मौलाना कारी मोहम्मद बताते हैं कि अब तक यहां से करीब 20 हजार बच्चे मजहबी तालीम ले चुके हैं.

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