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गया : सात वर्षों में भेजे गये 300 पत्र, पर नहीं संभव हो सका एक बिल्डिंग का निर्माण
सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों का भी कहना नहीं गया : साहेबों के चैंबर के किसी कोने का सीमेंट भी अगर निकल जाये, तो अगले दो दिनों में पूरे चैंबर की मरम्मत शुरू हो जाती है. इसके लिए कोई चिट्ठी नहीं लिखनी पड़ती, कोई विभाग या अधिकारी के पास चक्कर नहीं लगाना पड़ता. लेकिन, बात जब […]
सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों का भी कहना नहीं
गया : साहेबों के चैंबर के किसी कोने का सीमेंट भी अगर निकल जाये, तो अगले दो दिनों में पूरे चैंबर की मरम्मत शुरू हो जाती है. इसके लिए कोई चिट्ठी नहीं लिखनी पड़ती, कोई विभाग या अधिकारी के पास चक्कर नहीं लगाना पड़ता.
लेकिन, बात जब पब्लिक की जरूरत की आती है, तो तमाम नियम व कानून गिनाये जाते हैं, इससे सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों पता चलता है. इसकी एक बानगी प्रभावती अस्पताल स्थित एएनएम स्कूल के हॉस्टल को देख कर मिलती है. इस स्कूल व हाॅस्टल की बिल्डिंग की स्थिति ऐसी है कि कभी भी गिर जाये, पर परवाह किसे है. सभी के पास काम के बहाने हैं.
चिंता केवल यहां रहनेवाली 250 छात्राओं को ही है. हो भी क्यों न, हर रोज जान उनकी ही मुश्किल में है. इस बिल्डिंग के जीर्णोद्धार के लिए बीते सात वर्षों में 300 से अधिक पत्राचार किये गये. कर्मचारी कहते हैं कि पत्रों के तीन फाइल तैयार हो चुके हैं. सिविल सर्जन और जिलाधिकारी के कार्यालय से लेकर भवन निर्माण विभाग, राज्य स्वास्थ्य समिति, स्वास्थ्य विभाग तक जानकारी दी गयी.
लेकिन, कहीं भी इस पर विचार तक नहीं किया गया. जबकि, भवन निर्माण विभाग ने सात साल पहले ही इस बिल्डिंग को रहने के लिए अयोग्य करार दे दिया है. ऐसे में भी अगर विभाग और प्रशासन को फिक्र नहीं है, तो शायद सभी किसी बड़ी घटना के होने का इंतजार कर रहे हैं.
भवन निर्माण विभाग को भेजे गये 100 से अधिक पत्र
बिल्डिंग के निर्माण के लिए सबसे ज्यादा पत्र भवन निर्माण विभाग को लिखे गये. 2011 से ही लगातार प्रभावती अस्पताल प्रबंधन पत्राचार कर रहा है. अधिकारियों के मुताबिक 2011 में ही एक सर्वे के बाद स्कूल की बिल्डिंग को अयोग्य करार दे दिया गया. कई बार जांच के लिए अधिकारी आये, कई बार मौखिक रूप से योजनाएं बनीं. लेकिन, कागज पर कभी कुछ नहीं हुआ. 2012 के बाद कई बार सिविल सर्जन कार्यालय को भी पत्र भेजा गया, लगभग 50 पत्र राज्य स्वास्थ्य समिति और स्वास्थ्य विभाग के दूसरे पदाधिकारियों को भी भेजे गये. लेकिन, इन सभी पत्रों का न तो कोई ठोस जवाब मिला और न ही आश्वासन. प्रभावती अस्पताल के अधीक्षक डाॅ एसके चौधरी बताते हैं कि वह लोग हर बैठक में इस विषय को सामने रखते हैं. हर उस जगह पत्र भेजा गया जहां से बात बन सकती थी, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ.
मुश्किल में छात्राओं की जान
एएनएम स्कूल की स्थिति ऐसी है कि कोई इसे देख कर ही समझ जायेगा कि यहां रहनेवाली छात्राएं केवल अपने रिस्क पर रहती हैं. बिल्डिंग की दीवारें कई जगहों पर टूट गयी हैं.
अंदर के सीमेंट झड़ गये हैं. बारिश के दिनों में बिल्डिंग का हर कोना रिसता है. यहां की कुछ छात्राओं के मुताबिक कभी भी बिल्डिंग गिर जायेगी. वे लोग जोर से दबाव के साथ चलने तक से डरती हैं.बारिश के दिनों में सबसे ज्यादा डर लगाता है.
कई बार सांप-बिच्छू घुस जाते हैं. शिकायत करने के बाद भी कोई सुनने वाला नहीं है. अस्पताल व स्कूल के अधिकारी बताते हैं कि कई बार जब बैठक में यह बात रखी गयी, तो कहा गया कि प्राइवेट बिल्डिंग किराये पर ले लें. लेकिन, उस बिल्डिंग का किराया और वहां से छात्राओं को अस्पताल तक लाने में होने वाले खर्च के लिए पैसे कहां से आयेंगे, इस पर कोई गाइडलाइन नहीं दिया जाता.
व्यवस्था पर उठ रहे सवाल
सात वर्षों में एक बिल्डिंग का जीर्णोद्धार नहीं होने से पूरे सिस्टम पर कई सवाल उठ रहे हैं. सात साल और 300 से अधिक पत्र भेजे जाने पर भी कार्रवाई नहीं होने का क्या मतलब हो सकता है. क्यों विभाग को कोई फिक्र नहीं है?
क्या अधिकारी-कर्मचारी इन पत्रों को देखते भी हैं या नहीं? जांच रिपोर्ट के बाद भी काम नहीं होना लापरवाही है? करोड़ों रुपये के बजट में बिल्डिंग जीर्णोद्धार की प्लानिंग क्यों नहीं? किसी दिन बड़ी घटना हुई, तो उसकी जिम्मेदारी किस पर होगी? जब स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन अपने ही विभाग की गुहार को नहीं सुनता, तो क्या पब्लिक की बातें सुनीं जायेंगी?
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