गया : सरकारी स्तर पर मरीज को ले जाने के लिए एंबुलेंस का जितना भी प्रचार हो, हकीकत यह है कि लोगों को अब भी यह सेवा सही समय पर नहीं मिल पाती है. हर सरकारी अस्पतालों के बाहर खड़े प्राइवेट एंबुलेंस इस बात की गवाह हैं. लोग यूं ही नहीं कहते कि प्राइवेट एंबुलेंस नहीं हो तो मरीजों की जान चली जाये.
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एंबुलेंस के िलए 102 डायल करने पर िमला जवाब- इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं
गया : सरकारी स्तर पर मरीज को ले जाने के लिए एंबुलेंस का जितना भी प्रचार हो, हकीकत यह है कि लोगों को अब भी यह सेवा सही समय पर नहीं मिल पाती है. हर सरकारी अस्पतालों के बाहर खड़े प्राइवेट एंबुलेंस इस बात की गवाह हैं. लोग यूं ही नहीं कहते कि प्राइवेट एंबुलेंस […]
मरीज अगर अस्पताल में हैं, तो कुछ हद तक तो सरकारी सेवा मिल जायेगी इसका यकीन रहता है,लेकिन अगर मरीज घर पर हो तो उसे वक्त रहते एंबुलेंस मिलेगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है. गर्भवती महिलाओं का आॅटो, रिक्शा, प्राइवेट एंबुलेंस या अन्य किसी माध्यम से अस्पताल तक आना भी इन बातों को साबित करता है. हर रोज जय प्रकाश नारायण अस्पताल, प्रभावती अस्पताल व मगध मेडिकल काॅलेज व अस्पताल में कई गर्भवती महिलाएं निजी संसाधनों के सहारे आती हैं, जबकि सरकारी स्तर पर गर्भवती महिलाओं के लिए एंबुलेंस सेवाएं मुफ्त हैं. इस मसले पर रविवार को कुछ पड़ताल की गयी.
102 नंबर पर डायल करने पर ‘ इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं ……’ ही सुनने को मिलता है. कई दफा प्रयास करने के बाद ही फोन लगता है. सवाल यह है कि इमरजेंसी में इतनी देर तक इंतजार कौन करेगा ? एंबुलेंस के आने में देर होने से अगर मरीज की जान गयी तो जिम्मेदारी कौन लेगा ? जिला स्वास्थ्य समिति का इस व्यवस्था पर कंट्रोल क्यों नहीं है?
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