गया : दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण एवं साहित्यिक संकुल की ओर से ‘गजानन माधव मुक्तिबोध जन्मशताब्दी वर्ष’ के अवसर पर शुक्रवार को संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध कथाकार और हंस पत्रिका के संपादक संजय सहाय ने कहा कि मुक्तिबोध नयी कविता और नयी कहानी के संस्थापकों में से एक थे. उन्होंने कहा कि आज के इस कठिन समय में मुक्तिबोध की ईमानदार कविता हमारा मार्गदर्शन कर सकती है.
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गया कैंपस के परिसर प्रभारी प्रो. प्रभात कुमार सिंह ने कहा कि मुक्तिबोध ऐसे रचनाकार थे, जिनके पास विश्व दृष्टि थी. उनकी रचनाधर्मिता ही उनको महान बनाती है. वहीं, भारतीय भाषा केंद्र के सहायक प्राध्यापक डॉ. कर्मानंद आर्य ने कहा कि वहीं रचनाएं लंबा जीवन पाती हैं, जो अंतिम मनुष्य तक पहुंचती है. मुक्तिबोध ऐसे अनोखे रचनाकार थे, जिनका कोई भी पुरोधा कवि नहीं है. डॉ कफील अहमद नसीम ने कहा कि मुक्तिबोध भाषा की सीमाओं को तोड़कर शायरी और आत्मसंघर्ष के कवि थे. युवा कवि अनुज लुगून ने कहा कि मुक्तिबोध की कविताएं मध्यवर्ग के चरित्र का अन्वेषण करती हैं.
उनकी रचनाओं में अंतः व बाह्य और चेतना का समन्वय मिलता है. आलोचक डॉ योगेश प्रताप शेखर ने कहा कि मुक्तिबोध का काव्य जवानी के खतरे और जीवन के उठापटक से लबरेज था. राजनीति विभाग के शोध छात्र नीरज ने मुक्तिबोध की कविताओं को राष्ट्रवाद से जोड़ा. सिद्धार्थ और प्रिंस ने मुक्तिबोध की कविताओं का पाठ किया. इस कार्यक्रम के आयोजक मंडल में सत्यप्रकाश, आशीष, अश्विनी और कुंदन कुमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस कार्यक्रम का संचालन अनूरंजनी और कुंदन ने किया. कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के प्राध्यापक प्रो. संजय प्रकाश श्रीवास्तव, डॉ शांति भूषण, राकेश, नीतीश कुमार, आकांक्षा डिंपल, आयूषी, नवनीत आदि उपस्थित रहे. कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन प्रज्ञा ने किया.