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हर बालिग मर्द व औरत को रोजा रखना फर्ज
दरभंगा/अलीनगर : रोजा सब्र और बर्दाश्त के साथ दूसरों की खिदमत का जज्बा पैदा करता है रमजानुल मुबारक की अहमियत पर रोशनी डालते हुए मौलाना मोजाहिद नदवी ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि रोजे की हालत में भूख प्यास की ज्यादती होनी स्वाभाविक है. इसे खुशी ख़ुशी दौलतमंद से लेकर गरीब आदमी महीना भर […]
दरभंगा/अलीनगर : रोजा सब्र और बर्दाश्त के साथ दूसरों की खिदमत का जज्बा पैदा करता है रमजानुल मुबारक की अहमियत पर रोशनी डालते हुए मौलाना मोजाहिद नदवी ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि रोजे की हालत में भूख प्यास की ज्यादती होनी स्वाभाविक है. इसे खुशी ख़ुशी दौलतमंद से लेकर गरीब आदमी महीना भर बर्दाश्त करता है. इससे न केवल उनके अंदर सब्र (धैर्य) की क्षमता बढ़ती है, बल्कि भूखे प्यासे रहने वाले मुआशरे (सोसाईटी) के अनगिनत लोगों के कष्ट और तकलीफ का अंदाजा होता है.
उसी अंदाजा की बुनियाद पर लोग पीड़ित समाज की खिदमत व सहायता करने में आगे आते हैं. इस महीना में आम तौर पर लोग नेकियों का काम करते हैं. इसे करने का हुक्म कुरआन व हदीसे नबवी से साबित है. उन नेकियों में एक तरफ तो अल्लाह की ईबादत, जिसमें फर्ज, सुन्नत व नवाफिल शामिल हैं, तो दूसरी तरफ गरीब व मोहताजों की मदद करना भी. वह गरीब चाहे किसी जाति व बिरादरी और मजहब का हो सकता है. उसकी मदद करने में बड़ा सवाब (पुण्य) है.
उन्होंने कहा कि हर बालिग़ मर्द व औरत पर रोजा रखना फर्ज (अनिवार्य) है. रोजा से संबंधित अरबी का एक शब्द सौमुन है, जिसका अर्थ जलाने के है. अर्थात यह रोजा गुनाहों को इस तरह जला देती है, जिस प्रकार आग लकड़ी को जला कर खाक कर देती है.
इसलिये तमाम रोजेदारों को चाहिये कि माहे रमजान का पूरा- पूरा सम्मान करें और रोजा रखने के साथ- साथ अपने रोजा की हिफाजत भी करें. सिर्फ भूखे प्यासे रह जाने से रोजा नहीं होता, बल्कि रोजेदारों को तमाम बुराईयों यथा चुगली, झूठ, नफरत, क्रोध, लोभ और किसी को तकलीफ पहुंचाने वाली हरकत से बचें. नमाज और कुरआन की तिलावत व नमाजे तरावीह की पाबंदी करें.
उन्होंने कहा कि सभी संपन्न व खुशहाल लोगों को चाहिये कि जकात व फितरा की राशि से अभी से ही गरीब व जरूरतमंदों की मदद करनी शुरू कर दें. इससे उनका रमजान और आने वाले ईद का त्योहार भी अच्छा हो जाएगा. मौलाना ने कहा कि सोसाइटी में अधिकांश लोगों ने यह मिजाज बना लिया है कि रमजान के अंतिम तिथियों में उक्त मद की राशि निकाल कर गरीबों को देते हैं. तब- तक काफी देर हो गई होती है.
इसके कारण कई लोग अपने परिवार का कपड़ा नहीं ले पाते और लेते हैं तो सिला नहीं पाते हैं. अंतिम रमजान में मंहगाई की मार अलग झेलनी पड़ती है. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वह लोग बहुत खुशनसीब हैं, जिसने रमजान का महीना पाया और उसकी क़द्र किया. रोजे रखे और नेकियां कमाई.
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