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कब कारगर होगा स्कूलों का निरीक्षण

कब कारगर होगा स्कूलों का निरीक्षण लीपापोती में चला जाता है प्रतिवेदनदरभंगा. विद्यालयी शिक्षा मेंं गुणवत्ता लाने के लिए निरीक्षण को कारगर बनाने के विभागीय आदेश जमीनी अंजाम देता नजर नहीं आ रहा है. निरीक्षण का दायरा अभी भी शिक्षकों की अनुपस्थिति जांचने तक सीमित है. निरीक्षण अधिकारी जब स्कूलों के निरीक्षण में निकलते हैं […]

कब कारगर होगा स्कूलों का निरीक्षण लीपापोती में चला जाता है प्रतिवेदनदरभंगा. विद्यालयी शिक्षा मेंं गुणवत्ता लाने के लिए निरीक्षण को कारगर बनाने के विभागीय आदेश जमीनी अंजाम देता नजर नहीं आ रहा है. निरीक्षण का दायरा अभी भी शिक्षकों की अनुपस्थिति जांचने तक सीमित है. निरीक्षण अधिकारी जब स्कूलों के निरीक्षण में निकलते हैं तो अधिक से अधिक विद्यालयों की जांच करने का उद्देश्य रहता है. इसका परिणाम यह होता है कि गुणवत्ता शिक्षा के विभिन्न पहलुओं को जांचे बगैर इनका निरीक्षण कार्य संपन्न हो जाता है. वहीं दूसरी ओर अनुपस्थित शिक्षकों पर कार्रवाई भी लीपापोती में ही रह जाता है. इसी का परिणाम है कि जिस उद्देश्यों के लिए विद्यालयों का निरीक्षण होता है, उन उद्देश्यों की भी पूर्ति नहीं हो पाती. इसी का परिणाम है कि शिक्षकों के ससमय स्कूल पकड़वाने के लिए चल रहे मुहिम को अभी भी वक्त लगेगा, क्योंकि ऐसे शिक्षकों को मालूम है कि इस बार भी वे पैरवी अथवा पैसे के बलबूते पर ले दे कर छूट जायेंगे. हालांकि जिन शिक्षकों की ये आदत में शामिल नहीं है तथा परिस्थितिवश ऐसा करने की मजबूरी कभी कभार रहती है वे अब समय से स्कूल पहुंच रहे हैं तथा समय से स्कूल छोड़ने की प्रवृति देखी जा रही है. किंतु जिन शिक्षकों की किसी अन्य कार्य में संलिप्तता है तथा पठन पाठन से मतलब नहीं है, उनपर शिकंजा कार्रवाई से ही संभव है. अनुश्रवण व निरीक्षण का विभागीय आदेशविभागीय निर्देश के अनुसार विभागीय अधिकारी किे साथ साथ प्रखंड व संकुल समन्वयकों को भी महीना में कम से कम 20 दिनों का अनुश्रवण अनिवार्य है. इसी प्रकार बीइओ को 10 दिन तथा जिलास्तर के शिक्षाधिकारी को प्रत्येक माह कम से कम 5 दिन निरीक्षण करना अनिवार्य है. इसके अलावा जनप्रतिनिधियों को भी निरीक्षण कर प्रतिवेदन के माध्यम से विभागीय कार्रवाई करवाने का अधिकार है. यहां तक कि मुखिया को भी प्राथमिक तथा प्रखंड प्रमुख को मध्य विद्यालयों का निरीक्षण किया जाना है. दायरा का व्यापक होना आवश्यकविद्यालयों का निरीक्षण शिक्षक एवं छात्रों की उपस्थिति जांचने तक सीमित नहीं है. अपितु निरीक्षण अथवा अनुश्रवण के क्रम में पठन पाठन एवं सहगामी क्रियाओं की कार्यान्वयन की स्थिति पर नजर रखना है. वर्ग कक्ष में जाकर पाठ्यक्रम की स्थिति, बच्चों के उपलब्धि स्तर, रुटिन के अनुसार पढ़ाई, मध्याह्न भोजन, खेलकूद अथवा चेतना सत्र का संचालन, गतिविधि आधारित शिक्षण, एलएफएम का अउपयोग, उपचाराात्मक शिक्षण आदि का अवलोक न प्रतिवेदन में करना है.अधिकांश निरीक्षण की होती है लीपापोतीगुणवत्ता शिक्षा के लिए निरीक्षण कारगर उपाय माना जाता है. किं तु विडंबना इस बात की है कि अधिकांश निरीक्षणों पर कार्रवाई नहीं हो पाती, बल्कि इसे आय का श्रोत मानते हुए प्रखंड व जिला कार्यालय से निपटा देते हैं. इसी का परिणाम है कि जो अनुपस्थित शिक्षक हैं, उनपर लगाम नहीं लग पा रहा है. अगर विगत के कुछ वर्षों के निरीक्षण एवं उसपर कार्रवाई का ब्योरा उपलब्ध हो तो स्थिति अपने आप स्पष्ट हो जायेगा कि निरीक्षण कर स्पष्टीकरण के अलावा कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई. अगर हुई भी होगी तो ऐसे पर जिन्होंने कार्यालयों का चढ़ावा नहीं मिला होगा.

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