मिथिला के विद्वान की पुस्तक पर बेल्जियम को नोबेल तो यहां क्यों नहीं : कुलपति फोटो::::::::परिचय : 1 संबोधित करते कुलपति मंचासीन अतिथि 2 मंचासीन कुलपति संग अतिथि 3 संबोधित करते कुलसचिव डॉ. सुरेश्वर झाआरएजी महाविद्यालय में आयोजित समारोह में बोले संस्कृ त विवि के कुलपति डा. देवनारायण झाप्रतिनिधि, कमतौल.पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करें, परंतु अपनी संस्कृति को नहीं भूलें. निरंतर स्वाध्याय करें. विद्या अध्ययन करें. वेद का अनुपालन और धर्मशास्त्र की पढ़ाई करें. संस्कृत को आधुनिकता से जोड़ें. जहां रहें वहां सफाई करें, स्वच्छता में लक्ष्मी का निवास है. हम सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करें, घर, गांव की साफ-सफाई पर भी ध्यान केन्द्रित करें. कुलपति ने जोर देकर कहा हम पूर्वजों की परंपरा को नहीं बचा सकते, तो मिथिलांचल में रहने का कोई अधिकार नहीं है. उक्त बातें यूजीसी प्रायोजित एक्सटेंशन एक्टिविटी कार्यक्रम, जो कि स्नातकोत्तर वेद धर्मशास्त्र विभाग द्वारा शुक्रवार को राम औतार गौतम संस्कृत महाविद्यालय अहल्यास्थान में आयोजित किया गया था, का उद्घाटन करने के बाद कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि के कुलपति डॉ. देव नारायण झा ने कही. उन्होंने कहा कि मिथिला के विद्वान बच्चा झा की पुस्तक पर बेल्जियम के विद्वान को नोबेल पुरस्कार मिल सकता है तो यहां के विद्वानों को क्यों नहीं? संस्कृत भाषा कठिन नहीं है. इसे अवश्य पढ़ें. अन्य विषयों की तरह इसकी पढ़ाई करने से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है.छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं होने तथा शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में लोगों की कम उपस्थिति देखकर कुलपति बिफर पड़े. कहा की महाविद्यालय में छात्रों की संख्या एवं कार्यक्रम में लोगों की कम उपस्थिति भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. राशि मिल रही है. फिर सदुपयोग नहीं होना चिंतनीय है. कुलपति ने महाविद्यालय के प्राचार्य और प्राध्यापकों को नसीहत देते हुए कहा सिर्फ कार्ड भेज देने से नहीं होगा. सभी लोग मिलकर क्षेत्र में छात्र-अभिभवकों से मिलते रहें. उन्हें संस्कृत पढ़ने को प्रोत्साहित करें, इसका महत्व बतावें. यह काम हुआ रहता तो आज छात्रों और लोगों की उपस्थिति इतनी कम नहीं होती. अधिकार से वंचित होने पर बढ़ता है असंतोष : डॉ. सुरेश्वर झाकिसी भी मानव के जीने के अधिकार का हनन नहीं किया जाना चाहिए. इससे समाज में असंतोष बढ़ता है. रामऔतार गौतम संस्कृत महाविद्यालय में शुक्रवार को मानवाधिकार शिक्षा विषय पर आयोजित कार्यक्रम में कुलसचिव डॉ. सुरेश्वर झा ने कहा कि संपूर्ण मानव जाति के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य अति आवश्यक है. परिवार को भी आगे बढ़ाने का अधिकार है. इसका उल्लंघन होने पर वंचितों के बीच असंतोष बढ़ता है. इसलिए मानवता और मानवाधिकार की रक्षा के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए. कहा जीने का अधिकार छीन जाने पर परिवार, समाज, देश में असंतोष बढ़ता है. समाज में असंस्कार पैदा होता है. चोरी, डकैती और की घटना बढ़ती है. हर हाल में इसकी रक्षा होनी चाहिए. यह हम सभी लोगों का दायित्व है. मानवाधिकार को संस्कृत शिक्षा से जोड़ते हुए कहा समाज सुधारों के लिए वेद-पुराण की रचना की गयी थी. जाति, धर्म, देश और काल से ऊपर उठकर ऋषि पराशर और मत्स्यगंधा के पुत्र महर्षि वेद व्यास की रचना आज भी प्रासंगिक है. बिना संस्कृत शिक्षा ग्रहण किये उसमें सन्निहित मूल तत्वों को समझना कठिन है. कहा जिस तरह से अयोध्या और जनकपुर निर्विवाद है, उसी तरह अहल्यास्थान भी निर्विवाद है. यहीं पति गौतम के शाप से अहल्या पत्थर हुई थी. वर्षों बाद प्रभु श्री राम ने सामाजिक बहिष्कार से पत्थर रुपी पतित पावनी अहल्या को जीने का अधिकार प्रदान किया. कुलपति डॉ. देवनारायण झा एवं पूर्व कुलपति पंडित उपेन्द्र झा की अध्यक्षता में दो सत्र में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चार और स्वागत गान से हुआ. बजरंग म्यूजिकल के बजरंगी शरण के निर्देशन में प्रज्ञा रानी, रघुवीर, रघुनन्दन द्वारा स्वागत गान सुनकर आगत अतिथि भाव विभोर हो गये. इस अवसर पर डॉ. शिवाकांत झा, डॉ. विधेश्वर झा, डॉ. शिवलोचन झा, डॉ. बौआ नन्द झा, डॉ. विनय कुमार मिश्र, शशि नाथ झा, दिलीप कुमार झा सहित कई गणमान्य अतिथियों ने अपने विचार व्यक्त किये. ग्रामीण डॉ. कवीश्वर ठाकुर, मुखिया सूर्यनारायण शर्मा, पवन कुमार ठाकुर, अमरनाथ ठाकुर, नरेश ठाकुर सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षक-छात्र भी उपस्थित रहे. प्राचार्य डॉ. भगलू झा ने अतिथियों और गणमान्य लोगों का अभिनंदन और अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया.
मिथिला के वद्विान की पुस्तक पर बेल्जियम को नोबेल तो यहां क्यों नहीं : कुलपति
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