अतरबेल : एसएच 97 पर सीतामढ़ी से सिल्लीगुड़ी जाने वाली स्लीपर बस का परिचालन पिछले वर्ष से ही बन्द है. इस्ट-वेस्ट कोरीडोर निर्माण के पश्चात सीतामढ़ी एवं पुपरी से सिल्लीगुड़ी के लिए सीधा बस का परिचालन दो-तीन वर्ष पहले ही शुरू हुआ था़
इस सड़क में ग्यारह हजार के हाइ टेंशन तार की ऊंचाई कम होने तथा स्लीपर बसों की ऊंचाई साधरण बसों से अधिक होने की वजह से थोड़े दिन ही परिचालन के बाद उसका मार्ग बदल दिया गया़ पुराने जर्जर मार्ग होने के बावजूद भी इस मार्ग में स्लीपर बसों का प्रतिदिन परिचालन हुआ करता था़
जाले -घोघराहा मार्ग का नवीकरण तथा इस मार्ग में लतराहा एवं वंशी चौक के समीप पीसीसी सड़क का निर्माण के बाद इन दोनों जगहों पर सड़क थोड़ी ऊंची हो गयी है़
इस मार्ग से गुजरने वाली ऊंची स्लीपर बसों की छतरी ग्यारह हजार हाइ टेंशन तार के सम्पर्क में आ जाने से स्पार्क करने लगता है़ विद्युत धारा प्रवाहित होने के भय से उक्त बसों के चालक ने इस मार्ग को छोड़कर घोघराहा से बसैठा जाकर डीकेबीएम सड़क से इस्ट-वेस्ट कोरीडोर को जाने लगी़
लगातार कुछ दिनों तक अच्छी सेवा प्रदान करने से इस मार्ग में आने वाले गांवों के लोगों को सिल्लीगुड़ी आने-जाने में सहुलियत होने लगी़ जाले, दोघरा, महदई चौक, वंशी चौक, कदम चौक,
रतनपुर आदि जगहों पर इन बसों का टिकट भी उपलब्ध होने लगा़ लगभग एक वर्ष से परिचालन ठप होने की वजह से इलाके के यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है़ अब उन्हें सिल्लीगुड़ी जाने के लिए घोघराहा, कमतौल अथवा दरभंगा जाकर ही बस पकड़ना पड़ता है़
सिल्लीगुड़ी से वापस घर लौटने वाले इस मार्ग के यात्रियों को भी यह बस ढ़ाई-तीन बजे घोघराहा चौक पर उतार देती है़ उस चौक से जाले-भरवाड़ा की ओर जाने वाली सवारी गाड़ी लगभग सात बजे मिलती है़ सुविधाविहीन उक्त चौक पर चार-पांच घंटों तक समय गुजारना कठिन ही नहीं असुरक्षित भी है़ कहते हैं
यात्रीरेवढ़ा निवासी मिथलेश साह, लक्ष्मण महतो का कहना है कि शारदीय नवरात्रा निकट होने की वजह से घर आना आवश्यक था़ सीतामढ़ी जाने वाली स्लीपर बस से आना काफी महंगा साबित हुआ़ सिल्लीगुड़ी से सीतामढ़ी जाने वाली सभी बसें लगभग ढ़ाई बजे के करीब घोघराहा चौक पहुंच जाती है़
अंधेरा रहने की वजह से उस वक्त उस चौक पर केवल आवारा कुत्ता अथवा सियार मटरगश्ती करते रहते है़ं उस वक्त वहां भय का माहौल व्याप्त रहता है़ वैसे समय में वहां उतरना तथा वहां एक पल भी ठहरना भयावह होता है़ इससे अच्छा कि मुजफ्फरपुर अथवा दरभंगा की ही गाड़ी पकड़कर दिन के उजाले में घर आये.